अनंत यात्रा
समुद्र और उसकी लहरों का 23.12.93
कोई पारावार नहीं
उनकी महिमा-गरिमा का
कोई जवाब नहीं.
सागर-तट से मिलने को आतुर
सगर-तट के आकर्षण से बंधी चली आई
मीलों लम्बी लहर
जो
कई हिस्सों में विभक्त हो चुकी होती है
के दोनों सिरे
आपस में मिलने को आतुर होते हैं
कभी-कभी
जब वे मिल जाते हैं
तो उनके हर्ष की सीमा नहीं होती
कभी
वे न मिल पाएं
तो अत्यंत गंभीरतापूर्वक
संतुष्टि से
वे दोनों
अपने अस्तित्व को
अपने जन्मदाता सिंधु में
शांतिपूर्ण विलीन करके
पुनः
अनंत यात्रा पर निकल पड़ती हैं.
इस अनंत यात्रा में
कभी वे
उगते सूर्य को नमन करती हैं
और
छिपते-से चंद्रमा को विदाई देती हैं
कभी
अस्तांचल को जाते हुए सूर्य के
दर्शन हेतु स्थिर हो जाती हैं
फिर
थोड़ी देर बाद
आने वाले चंद्रमा का
अभिनंदन करती हैं
कभी-कभी
चपल बालिकाओं की भांति
तारक-बाल-समूह से
अठखेलियां करती हुई
अनंत यात्रा का
अनंत आनंद लेती हैं.