विस्मृत करो
धुंध के
गहन आवरण में समाहित
अखिल सृष्टि को देखकर
विस्मय होता है
सृष्टि के नियामक को
दिन-रात का नियमन करने वाले
जाज्वल्यमान भगवान भास्कर
शीतल चारु चंद्रिका युक्त चंद्रमा
और
स्व सृजित सुंदर सृष्टि
कितनी प्रिय है
वह
निरंतर इनको निरखता रहता है
किंतु कभी-कभी
धुंध के आवरण में
सृष्टि को आवृत्त कर देता है
मानो
यह इंगित करता है
कि
कभी-कभी
आंतरिक आनंद हेतु
विस्मृत करना भी आवश्यक है
अतः
कभी-कभी
अपने कल्याण-हेतु
अपनी आंतरिक शक्तियां
संचित करने के लिए
कुछ समय तक
विस्मृत करो
यही
श्रेयस्कर है.