कविता

विस्मृत करो

धुंध के
गहन आवरण में समाहित
अखिल सृष्टि को देखकर
विस्मय होता है
सृष्टि के नियामक को
दिन-रात का नियमन करने वाले
जाज्वल्यमान भगवान भास्कर
शीतल चारु चंद्रिका युक्त चंद्रमा
और
स्व सृजित सुंदर सृष्टि
कितनी प्रिय है
वह
निरंतर इनको निरखता रहता है
किंतु कभी-कभी
धुंध के आवरण में
सृष्टि को आवृत्त कर देता है
मानो
यह इंगित करता है
कि
कभी-कभी
आंतरिक आनंद हेतु
विस्मृत करना भी आवश्यक है
अतः
कभी-कभी
अपने कल्याण-हेतु
अपनी आंतरिक शक्तियां
संचित करने के लिए
कुछ समय तक
विस्मृत करो
यही
श्रेयस्कर है.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244