गीतिका/ग़ज़ल

मेरी तीसरी गज़ल

जिन्हें अपने क़रीब समझकर हमराज़ था बनाया, उनसे ही फासले साबित हुए

इश्क़ मुक्कमल[1] कामिल[2] नहीं होता कि वादे मेरे सारे ही खोखले साबित हुए

ये क्या तहज़ीब[3] है जो अक्सर पेश आते हैं, बगल से दामन बचा गुज़र जाते हैं,

गैर भी मिलते हैं तो मुस्कुराते हैं कि आप से तो हुज़ूर बेगाने भी भले साबित हुए

मिला करो कि धड़कती नब्ज़ रहे, इश्क़-ए-गुलशन[4] की दरख़्त[5] सब्ज़[6] रहे

शमा भी परवाने के लहू से जज़्ब[7] रहे, कि हम परवानों से भी जले साबित हुए

दाग़-ए-दिल मुश्किलों से साफ़ किया कि ख़ुदी के लिए तुझे माफ़ किया

कि आज दिल ने शीशा-ए-अक़्स[8] लिया कि फिर नए दाग़ निकले साबित हुए

एक सदी बीती, एक तिलिस्म टूटा, यादों का शहर भी पीछे छूटा

क्या हवा चली कि शाख से पत्ता टूटा, सूखे पत्ते से मेरे हौंसले साबित हुए

नहीं अब ज़रूरत तेरी, तू नहीं खलता है, कि तेरे बिना भी कार-ए-नुमायाँ[9] चलता है

मेरे क़तल को सीने में याद-ए-नशतर मचलता है, यादों के ये नश्तर[10] ही नुकीले साबित हुए।

आज भी एक अधूरा ख्वाब सताता है, सोने जब भी जाती हूँ जगाता है

शब[11] का पिछला पहर खुशबू -ए-यार खींच लाता है, कि ख्वाब सारे रेत के ही टीले साबित हुए

मुहब्बत को मेरी सलीब[12] पर टांग दिया फिर उसे दर्द के जज़ीरे[13] पर तन्हा किया

चल तेरा हर इलज़ाम सर-ए-ताज[14] सा लिया कि गोया हम ही पगले साबित हुए।

अनपढ़ निकले जो दाद देते थे कि ख़त को देख के जो मजमून[15] भाँप लेते थे।

क्या आशुफ़्ता-सरों[16] में उन्हें हम न दिखाई देते थे, ज़हनसीब[17] ही मनचले[18] साबित हुए।

कि तुमने तरीके से तबाह भी न किया, न रहकर भी खुद को कहीं रहने दिया

‘रेणुका’ से शायरा बनाने का शुक्रिया, कि शिकवा-ए-यार[19] गज़ल के मुआमले[20] साबित हुए।

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[1] Perfect, complete

[2] Accomplished

[3] Politeness, culture, civilization

[4] Garden of love

[5] Tree

[6] Green

[7] Absorbed

[8] Image/reflection of mirror

[9] Prominent action, bold action

[10] Cutter/ lancet/fleam/trocar

[11] Night

[12] Cross, crucifixion

[13] Island

[14] Crown of head

[15] Topic, Subject

[16] Distressed/ afflicted people

[17] My Good Luck

[18] Mischievous

[19] Complaints with lover

[20] Subject

*नीतू सिंह

नाम नीतू सिंह ‘रेणुका’ जन्मतिथि 30 जून 1984 साहित्यिक उपलब्धि विश्व हिन्दी सचिवालय, मारिशस द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय हिन्दी कविता प्रतियोगिता 2011 में प्रथम पुरस्कार। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख, कहानी, कविता इत्यादि का प्रकाशन। प्रकाशित रचनाएं ‘मेरा गगन’ नामक काव्य संग्रह (प्रकाशन वर्ष -2013) ‘समुद्र की रेत’ नामक कहानी संग्रह(प्रकाशन वर्ष - 2016), 'मन का मनका फेर' नामक कहानी संग्रह (प्रकाशन वर्ष -2017) तथा 'क्योंकि मैं औरत हूँ?' नामक काव्य संग्रह (प्रकाशन वर्ष - 2018) तथा 'सात दिन की माँ तथा अन्य कहानियाँ' नामक कहानी संग्रह (प्रकाशन वर्ष - 2018) प्रकाशित। रूचि लिखना और पढ़ना ई-मेल [email protected]