कविता

मीत मेरे….

मेरे मन के मीत हो तुम
मेरे आँखों की तस्वीर हो तुम

उम्मीदों का दीप जलाए
ख्वाबों की तक़दीर हो तुम

मन-मन्दिर की पूजा हो तुम
मेरी प्रार्थना का स्वीकार हो तुम

जो मिट न सके कभी यादों से
वो गहरी अमिट छाप हो तुम

शरीर से जो कभी जुदा न होता
उस जीवन की परछाई हो तुम

इस तन की बुझती प्यास हो तुम
जज्बातों के सुखद एहसास हो तुम

जो शब्दों से वयाँ न हो उन
अनकही बातों की आवाज हो तुम

ओ सुन लो…मीत मेरे
ये जीवन तुमसे ही शुरू
और तुमपर ही खत्म है।

*बबली सिन्हा

गाज़ियाबाद (यूपी) मोबाइल- 9013965625, 9868103295 ईमेल- [email protected]