काव्यमय कथा-15 : जैसी करनी, वैसी भरनी
हाथी एक रोज़ जाता था,
पास एक दर्ज़ी के,
दर्ज़ी उसको रोटी देता,
हाथी करता ”नमस्ते”.
एक बार दर्ज़ी ने उसको,
सूंड में सुई चुभो दी,
गुस्सा आया हाथी को भी,
दोस्त ने दोस्ती खो दी.
हाथी गया नदी पर सीधा,
खूब नहाया मलकर,
सूंड भरी कीचड़ से उसने,
आया दर्ज़ी के घर.
सारी कीचड़ उसने डाली,
दर्ज़ी के कपड़ों पर,
करनी का फल पाकर दर्ज़ी,
पछताया जी भरकर.