मुझे तू नज़र आया
बरसों नहीं, जिन्हें जीया मैंने जन्मों,
उन ख्वाबों के कत्ल में…
मुझे तू नज़र आया l
रेत के महल जैसे, ख्वाब मेरे बिखरे,
उस साजिश के पीछे…
मुझे तू नज़र आया l
उठी थी जब डोली, वो अर्थी थी मेरी,
अरमानों पे हँसता…
मुझे तू नज़र आया l
मुकद्दर का था खेला, जिसे मैंने झेला,
मेरी हर रुसवाई के पीछे…
मुझे तू नज़र आया l
बस तू नज़र आया ll
अंजु गुप्ता