सत्य के उजाड हो गये झूठ के दरख्त फल गये
सत्य के उजाड हो गये
झूठ के दरख्त फल गये
वक्त की है मार देखिये
चाँदनी में हाथ जल गये
जोर जोर से चली हवा
दीप बुझ गया उम्मीद का
छुप गया झलक दिखा दिखा
क्यूँ न जाने चाँद ईद का
चाल जो समय बदल गया
पल में रिश्ते ही बदल गये…
वक्त की है मार देखिये
चाँदनी में हाथ जल गये…
जब से ज़िन्दगी की पीठ पर
आरजू सवार हो गयी
नफ़रतों की जीत हो गयी
ज़िन्दगी की हार हो गयी
देखते ही देखते यहाँ
धर्म आदमी को छल गये…
वक्त की है मार देखिये
चाँदनी में हाथ जल गये…
ठोकरें लगी तमाम पर
आदमी सम्हल नही सका
बात नेकियों कि की मगर
नेकियों पे चल नही सका
पुण्य के फले नही मगर
बाग पापियों के फल गये…
वक्त की है मार देखिये
चाँदनी में हाथ जल गये…
दर्द बे पनाह जो बढा
सब्र टूटकर बिखर गया
भावनाओं के बहाव में
फर्ज डूब डूब मर गया
सबका राज पास हो गया
सब नकाब खुद निकल गये…
वक्त की है मार देखिये
चाँदनी में हाथ जल गये…
सतीश बंसल
१८.०३.२०१७