दोहे…
मन का पंछी उड़ रहा, सपनों के आकाश।
तन भौतिकता लीन है, कैद मोह के पाश॥
जीवन की परिकल्पना, अंतस का संकल्प।
विपदा में देते हमें, पग पग नया विकल्प॥
चिंतन साधन भूलकर, मन चिंता में लीन।
अपयश के भागी सदा, होते कर्मविहीन॥
जन जीवन के मूल हैं, सब धर्मो के ग्रंथ।
मानवता सदभावना, सिखलाते सब पंथ॥
चिंता देती चित्त को, केवल रोग विकार।
चिंतन से मिलता सदा, जीवन को विस्तार॥
जीवन भर पलता रहा, मन में अन्तर्द्वंद।
जीवन के इस पुष्प में, पला नही मकरंद॥
अंतस में आँधी चली, आनन भाव विहीन।
मिथ्या विपदा काल में, कर देती है दीन॥
मन को साधो सत्य से, जीवन करो सुदीप।
विपदा के अँधियार में, आशा जलते दीप॥
बंसल सत की साधना, सबसे उत्तम कर्म।
मानव सेवा जानिये, मानवता का धर्म॥
सतीश बंसल
१८.०५.२०१७