गीतिका/ग़ज़ल

“हो सके तो”

दो घडी को पास आओ, हो सके तो,
या कभी हमको बुलाओ, हो सके तो!

कबसे है रुठा हुआ सा यार वो,
अब चलो उसको मनाओ, हो सके तो!

हो जो रौशन शब तुम्हारी तो सुनो,
फिर से मेरे ख़त जलाओ, हो सके तो!

अश्क़ पोंछे तेरे जिन मां बाप ने,
ना कभी उनको रुलाओ, हो सके तो!

प्यार से रहने की कहने, सुनने की,
रस्म ये फिर से चलाओ, हो सके तो!

क्या रखा है ‘जय’, यूं रोने-धोने में,
खुद हंसो सबको हंसाओ, हो सके तो!

जयकृष्ण चांडक ‘जय’
हरदा म प्र

*जयकृष्ण चाँडक 'जय'

हरदा म. प्र. से