घनाक्षरी (छंद)
हिन्दुओं की आस्था भी मखौल बनी भारत में ।
देख राजनीति का ये रंग रोष छा रहा ।।
ईश्वर की मूरत को पत्थर बताए कोई ।
कोई पुष्ट भोजन गोमाँस को बता रहा ।।
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धर्म और जाति में तलाशते हैं वोट सभी ।
बाँटते हैं देश नहीं अफसोस आ रहा ।।
‘सेक्युलरवाद’ का नया ही रूप देखता हूँ ।
एकता, अखण्डता को शब्द-युद्ध ढा रहा ।।
– राम दीक्षित ‘आभास’