बिक जाता है हर बार इंसान !!
कभी सपनों की खातिर तो,
कभी अपनों की खातिर
कभी पेट की खातिर तो,
कभी लालच की खातिर
बिक जाता है हर बार इंसान….
कभी धर्म की खातिर तो,
कभी कर्म की खातिर
कभी बेबसी बेच देती है तो,
कभी सोहरत बिक जाता है
बिक जाता है हर बार इंसान….
कभी रात के पहर में तो,
कभी दिन के उजाले में
कभी चार दिवारी के फेर में तो,
कभी खुले आकाश की सेज़ में
बिक जाता है हर बार इंसान….
कभी यूँ ही राह चलते
तो, कभी बाज़ार में
कभी भीड़ के सुरूर में
कभी एकांत के गुरूर में
बिक जाता है हर बार इंसान….
कभी जश्न में तो, कभी शोक में
कभी चाहत तो, कभी नफरत में
कभी आस्था तो, कभी अंधविश्वास में
बिक जाता है हर बार इंसान….
बिक जाता है हर बार इंसान….
के एम् भाई
cn.-8756011826