ग़ज़ल : यहाँ जिंदगी का सफर देखते हैं
यहाँ जिंदगी का सफर देखते हैं
जहाँ को तुम्हारा ही घर देखते हैं।
नजर भी तुम्हीं हो नजारा तुम्हीं हो
तिरे नूर का ही असर देखते हैं।
यहाँ आसमाँ से दुआ आ रही है
नजर को उठाकर जिधर देखते हैं
सुमन जिंदगी का महकता रहेगा
नशा तेरा हम आँख भर देखते हैं।
करूँ रात दिन अब तुम्हारी इबादत
सदा रूह को हम अमर देखते हैं।
— जयंती सिंह “मोहिनी”