लघुकथा

सलीम !

सौरभ और सलीम एक ही मौहल्ले में रहते थे, ईद और दिवाली पर खूब मस्ती करते एक दूसरे के घर आना जाना रहता। परिवार वाले भी मिलजुल कर रहते, पर दिवाली के कुछ दिन पहले ही दोनो परिवारों में कुछ बात को लेकर बहस हो गई थी, और बोलचाल बंद हो गई थी पर बच्चे तो एक दूसरे के साथ खेलना चाहते थे। डरते कुछ कह नहीं पा रहे थे, दिवाली का दिन आ गया था। सलीम का मन हो रहा था कि सौरभ के घर जाकर मिठाई भी खाए और खेले भी,वो दूर से ही सौरभ के घर की तरफ देख रहा था। सौरभ के ममी पापा ने देख लिया वो डर कर भागने लगा कि आँटी डांटेगी कि जब हम परिवार एक दूसरे से अब बात नहीं करते तो तुम क्या लेने आए हो? इतने में सौरभ भागता हुआ सलीम के पास गया और उसे गले से लगा लिया और कहा… यार ‘ हम तो खेल सकते हैं आ जा मैने ममी पापा को बोल दिया है ‘ हम दिवाली और ईद ईकट्ठे मनाएंगे उन्हें रुठना है तो रुठें! सलीम भी झट से बोला मैने भी अम्मी अबा से यही कहा है। उन्होने आने दिया सौरभ भी हँस कर बोला चल ममी पापा भी तुझे बुला रहे हैं । सलीम खुशी खुशी सौरभ के साथ चल पड़ा।
कामनी गुप्ता***
जम्मू !

कामनी गुप्ता

माता जी का नाम - स्व.रानी गुप्ता पिता जी का नाम - श्री सुभाष चन्द्र गुप्ता जन्म स्थान - जम्मू पढ़ाई - M.sc. in mathematics अभी तक भाषा सहोदरी सोपान -2 का साँझा संग्रह से लेखन की शुरूआत की है |अभी और अच्छा कर पाऊँ इसके लिए प्रयासरत रहूंगी |