बस मेरा इश्क़ ख़ास..!!
कब हासिल छीन के
ए- सुनो, तुम्हें इश्क़
देखती रही बस तुम
रूह उकेरते रहे…
बातों की साज़ में
हम-तुम बिछड़ते रहे..
फिर कब किया ज़बरन तुमसे
यही सोच में उलझती खुद से
पहले भी जली लौ बन
हौले-हौले मंद बयार की तरह
सांसो से अक्सर मिलते रहे
आज वफ़ा में तेरे जल रही
ख़ामोशी सिये सह भी जाऊँ
कि मुझे तुझपे इख्तियार नहीं
फिर मुझे सुन के तुम खामोश
बेचैन लौ के दीपक हो
मझधार में प्रीत मेरी
इश्क़ की रीत निभा रही
फासले औ फैसले के नाम
अश्क़ों से सब्र का बांध बना रही
कि अब इश्क़ से इश्क़
रूह भी कबका कर दिया फ़ना
तू जागीर नहीं जो छीन लूँ
ज़िंदगी कह फिर मुँह मोड़ लूँ
वक़्त के साथ ठहरी
मद्दिम रौशनी सी जलूँगी..
नंदिता लौ तुम दीपक तमाम उम्र साथ-साथ …बस मेरा इश्क़ ख़ास..!!
— तनूजा नन्दिता