लेख- अन्दर के शत्रुओं से लड़ें
हमारी ऊर्जा का बहुत बड़ा भाग शत्रुओं से लड़ने में व्यय होता है। शत्रुओं से लड़ना आवश्यक भी है परंतु बाहरी नहीं भीतरी। आयुपर्यंत बाहरी शत्रुओं से युद्ध करके भी अंत में हाथ कुछ नहीं आता। इनसे जितना शीघ्र युद्ध समाप्त हो जाए उतना ही अच्छा है क्योंकि जब हम इनसे अपना ध्यान हटाएंगे तभी वास्तविक शत्रुओं पर ध्यान केंद्रित कर पाएंगे एवं वो कोई अन्य नहीं हमारी अपनी ही बुरी आदतें हैं। अकर्मण्यता, कड़वा स्वभाव, ईर्ष्या, कायरता, अवसरवादिता इत्यादि हमारे अनेक शत्रु हमारे भीतर ही छुपे हुए बैठे हैं। इन्हें चिन्हित कीजिए और एक-एक करके मार भगाइए। यदि आप ऐसा करने में सफल हो गए तो आप पाएंगे कि आपके बाहरी शत्रु स्वयमेव ही परास्त हो गए या आपके मित्र बन गए।
— भरत मल्होत्रा