विश्व जल दिवस पर एक रचना….
श्रृंगार छ्न्द
अरे….! हो जाये हाहाकार।
न लूटो जीवन का आधार।
प्रथम जल जीवन है तो जीव।
अन्यथा तृण मानव निर्जीव।
न रूठे कहीं किसी इक रोज।
कि गंगू नीर का राजा भोज।
हनन कर, कर बैठें अधिकार।
कहीं कुछ बाहुबली मक्कार।
इसलिए करो नही बर्बाद।
रखो बस इतना तो तुम याद।
पिघलने से पहले ये पीर।
कहीं दुष्कर हो मिलना नीर।
चलाएं चलो एक अभियान।
प्रथम तुम बनो नही अनजान।
समझते हो गर जीवन अर्थ।
करो मत जलधन को यूँ व्यर्थ।
पड़े हैं निर्मम सूखे घाट।
नही अब देखे पनघट वाट।
सिसकती रहती है ये प्यास।
अधूरी रह न जाए आस।
अरे ओ बेसुध मानव जाग।
न कोई आकर बोले काग।
कहीं बढ़ जाए इतनी पीर।
कि पीना पड़े नैन का नीर।
कभी जब उमड़े नभ का नेह।
बरस पड़ते हैं जम के मेह।
बुझे जब प्यास,धरा दे छोड़।
कि “अनहद” बूँद बूँद को जोड़।
______ अनहद गुंजन अग्रवाल 22/03/18