ग़ज़ल
ए इनायत है खुदा की जो गुलामी मिट गई
बन गए हम दोस्त, ज़हमत दुश्मनी भी मिट गई |
पल पलों की जिंदगी में ये जवानी मिट गई
दिल लगाकर जो खुदा ने की, खुदाई मिट गई |
देश में उत्थान की ताज़ी हवा सालों चली
गाँव कस्बा शह्र की क्या सब गरीबी मिट गई ?
राज तंत्रों का हुआ जब नाश सारे विश्व से
दास दासी की परेशानी, गुलामी मिट गई !
याद तेरी जब भी’ आई, सोच कुछ ऐसे लिए
प्रेयसी अब मायके में, दरमियानी मिट गई |
मन बहुत बेचैन था, जब याद आई तू मुझे
स्वप्न में आकर गई तू, तब उदासी मिट गई |
जगमगाती जिंदगानी, हमने’ तो जी है यहाँ
तू हुई प्यारी खुदा को, जिंदगानी मिट गई |
साथ मिलकर हम बनाए थे बसेरा इक यहाँ
जब गई तू छोडकर, ‘काली’ निशानी मिट गई |
कालीपद ‘प्रसाद’