इतने प्यारे क्यूँ लगते हो
हाल तुम्हारा अक्सर खुद से पूछा करता हूँ ।
इतने प्यारे क्यूँ लगते हो सोचा करता हूँ ।
अपने दिल मे तुझको मै यूँ ढूंढ़ा करता हूँ ।
गुज़र रही तेरी यादों का पीछा करता हूँ ।
बोल नहीं पाता हूँ दिल की जो बातें तुझसे ,
वो बातें अक्सर खुद से ही बोला करता हूँ ।
यूँ मौजूद तसव्वुर तेरा दिल में रहता है,
मै रातों को सोते सोते जागा करता हूँ ।
प्यार भरी बातें हो या वो बेरूखी तेरी,
मै उन सब बातों के मतलब ढूंढ़ा करता हूँ ।
जितना जितना उजड़ा हूँ मै उतना फैला तू,
दूर तलक तुझको ही खुद में देखा करता हूँ ।
— नीरज निश्चल