गीतिका/ग़ज़ल

इतने प्यारे क्यूँ लगते हो

हाल तुम्हारा अक्सर खुद से पूछा करता हूँ ।
इतने प्यारे क्यूँ लगते हो सोचा करता हूँ ।

अपने दिल मे तुझको मै यूँ  ढूंढ़ा करता हूँ ।
गुज़र रही तेरी यादों का पीछा करता हूँ ।

बोल नहीं पाता हूँ दिल की जो बातें तुझसे ,
वो बातें अक्सर खुद से ही बोला करता हूँ ।

यूँ मौजूद तसव्वुर तेरा दिल में रहता है,
मै रातों को सोते सोते जागा करता हूँ ।

प्यार भरी बातें हो या वो बेरूखी तेरी,
मै उन सब बातों के मतलब ढूंढ़ा करता हूँ ।

जितना जितना उजड़ा हूँ मै उतना फैला तू,
दूर तलक तुझको ही खुद में देखा करता हूँ ।

— नीरज निश्चल

नीरज निश्चल

जन्म- एक जनवरी 1991 निवासी- लखनऊ शिक्षा - M.Sc. विधा - शायर सम्पादन - कवियों की मधुशाला पुस्तक