सामाजिक

मजबूरी में जहर बेच रही है भारतीय माताएं

मैं अपने सपरिवार रविवार को रेलगाड़ी में बैठ हैदराबाद से वाराणसी जा रहा था। बहुत तरीके से मांगने वाले आ – जा रहे थे। जैसे कि कोई झाड़ू लगाकर, कभी छोटे छोटे बच्चें गाना गाकर, कभी नपुंसक लिंग वाले भी आकर मांग रहे थे। मैं भी अपने खुशीनुसार दे रहा था। मेरे पिताजी भी मेरे इस नेक कार्य से बहुत खुश थे। मेरे पिताजी खैनी और दिन में एक दो गुटखा खाने के आदी हैं। आम तौर पर यह सब रेलगाड़ी के अंदर बेचना मना है। लेकिन कुछ घुसखोर प्रशासनिक अधिकारियों और कर्मचारियों के कारण यह सब रेलगाड़ी में भी संभव है।
अचानक एक महिला मेरे कोच में आकर जोर जोर से बोलते हुए अपने गुटखा, पान मसाला, खैनी, आदि के बारे में अवगत करा रही थी। ताकि लोगों तक उसकी आवाज पहुंच सके, और लोग खरीदकर एक दूसरे की आवश्यकता की पूर्ति करें। उस वृद्ध महिला की उम्र लगभग पचपन वर्ष होगी। लोग मोल भाव कर खरीदने लगे। उस महिला के तरफ इशारा करते हुए मैंने भी पिताजी से पूछा- क्या आपको भी कुछ चाहिए? पिताजी ने खैनी का इच्छा जताया। मैंने दस रुपए का खैनी खरीद कर उनको दे दिया। पंद्रह वर्षीय मेरा बेटा सुशील यह सब कुछ देख रहा था। वह जब मेरी मां से पूछने लगा तब वहां पर बैठे सभी लोग अवाक हो गए। उसके प्रश्नों को सुनकर सभी लोग आपस में बातचीत करने लगे। सुशील ने पूछा दादीजी- आप तो हमेशा पिताजी को दादाजी को, चाचा जी लगभग सभी को नशीला पदार्थ खाने से मना करती है। जहां तक मुझे पता है लगभग सभी माताएं बच्चों को यही गुर सिखाती है। मेरी मां सुशील की बातें समझ नहीं पा रही थी कि आखिर उसका आशय क्या है। उन्होंने सुशील से साफ साफ कहने को कहा, तब सुशील ने बताया कि दादी अभी जो वृद्ध महिला पान मसाला खैनी आदि लेकर आयी थी। वह भी तो एक मां ही है। यहां रेलगाड़ी में नशीला सामाग्री बेचना भी कानून जूर्म है। फिर यह मां अपने बेटे और पोते के उम्र के लोगों को यह नशीला सामान कैसे बेच रही है। इन्हें भी तो आपकी या दूसरी औरतों के जैसे ही समझाना चाहिए। लेकिन यह तो खुद आवाज लगाकर बेच रही है, ऐसा क्यों। तब सभी लोग उसके इस प्रश्न का उत्तर ढूंढने में लग गए। लेकिन कोई जवाब नहीं दे पा रहे थे। तभी मेरी मां ने कहा – बेटा उनकी कुछ मजबूरी होगी, हो सकता है वह गरीब हो, या उनके घर में कोई कमाने वाला न हो। इतना सुनते ही सुशील बोला- दादी मैं आपके बातों से सहमत हूं। लेकिन इनको कोई दूसरा विकल्प ढूंढना चाहिए। कोई और सामान बेचना चाहिए। क्या अपने बच्चों या परिवार के लिए दूसरों के परीवार को मौत के मुंह में डालने के लिए सामान मुहैया कराया जाना सामाजिक दृष्टि से ग़लत नहीं है। हम अपने बड़े बुजुर्गो के क्रियाकलापों का अनुकरण करते हैं। और पालन भी करने की भरपूर कोशिश करते हैं। क्या इनकी जिम्मेदारी इस लिए समाप्त हो गया कि ये गरीब है। क्या इनके परिवार के किसी भी सदस्य को कोई दूसरी महिला पान मसाला खैनी आदि खिलाये तो इनको अच्छा लगेगा। यह सारी बातें वह बूढ़ी महिला पीछे छुपकर सुन रही थी। वह अचानक सबके सामने आयी और आंखों में आये आसूं को अपने आंचल से पोछते हुए बोली- मेरे बेटे तुमने जो आईना दिखाया है। यह सिर्फ मुझे ही नहीं बल्कि मुझ जैसी लाखों महिलाओं की आंखें खोल दिया है। मैं आज तुमसे यह वादा करती हूं कि आज के बाद फिर कभी ऐसे सामानों की बिक्री नहीं करूंगी जिससे किसी मां का बेटा, किसी बहन का भाई, किसी बच्चे का बाप या किसी पत्नी का पति बीमार हो जाय। तब सुशील वृद्ध महिला से यह सब बेचने का कारण पूछा- तब उस महिला ने अपने आंसू को पोंछ कहने लगी बेटा मैं गरीब हूं। और गरीब बच्चों को पढ़ाने के लिए एक छोटी सी संस्था से जुड़ी हूं, और उसी के लिए यह सब करती हूं। मेरे परिवार में कोई नहीं है। इसलिए जो भी कमाती हूं वह पूरी रकम बच्चों के पढ़ने के लिए संस्था में दान कर देती हूं। लेकिन जब तुमने यह बताया कि एक लड़के के भरण-पोषण के लिए किसी अन्य के लड़के को जहर बेचना उचित नहीं है । तब मुझे लगा कि शायद मैं अनजाने में बहुत बड़ी गलती कर दी हूं। लेकिन आज से दूसरा सामान बेचूंगी। यह सुनते ही सुशील अपने पाकेट खर्च के रखें रूपयों में से कुछ रूपयें दिया। वह और लख लख धन्यवाद करते सारा नशीला सामान रेलगाड़ी से बाहर फेंक दी, और अगले स्टेशन पर उतर गई। इधर कोच में बैठे सभी लोग सुशील की प्रसंशा कर रहे थे।

संजय सिंह राजपूत
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संजय सिंह राजपूत

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