स्वार्थ और लालच के युग में, सदव्यवहार कहाँ मिलता है
स्वार्थ और लालच के युग में, सदव्यवहार कहाँ मिलता है।
भोगवाद के चले दौर में, सच्चा प्यार कहाँ मिलता है।।
इस युग में चाहत का मतलब
केवल तन को पाना भर है।
प्यार मुहब्बत की मंजिल अब
हमबिस्तर हो जाना भर है।।
आपाधापी के जीवन में, शिष्टाचार कहाँ मिलता है…
नये दौर के नये तरीके,
अपनाने को हैं आमादा।
रिश्तों की हर परंपरा को,
बिसराने पर हैं आमादा।।
लिविन रिलेशन के इस युग में, जीवन सार कहाँ मिलता है…
अपनों की आँखों से बहते,
आँसू पीना भूल गये हम।
सब कुछ पाने की चाहत में,
जीवन जीना भूल गये हम।।
जीवन में रिश्तों को रिश्तों, का अधिकार कहाँ मिलता है…
धर्म कर्म के माने केवल,
लोक दिखावे तक हैं सीमित।
आदर्शों के प्रति निष्ठाएं
बस बहकावे तक हैं सीमित।।
अब वो नैसर्गिक चिर यौवन, वो श्रृंगार कहाँ मिलता है….
सतीश बंसल
१७.०५.२०१८