तीरगी दिल से मिटाना चाहता हूँ
तीरगी दिल से मिटाना चाहता हूँ
दीप आशा के जलाना चाहता हूँ
रूठकर मुझसे हुए जो दूर मेरे
पास फिर उनको बुलाना चाहता हूँ
प्यार जब तक है तभी तक ज़िन्दगी है
मैं जहां को ये बताना चाहता हूँ
जानता मैं बहुत मुश्किल है लेकिन
आदमी ख़ुद को बनाना चाहता हूँ
पोंछकर आँसू किसी की बेबसी के
कुछ सुकूँ ऐ यार पाना चाहता हूँ
जश्न अपनों के घरों में हो किसी दिन
इसलिये मैं हार जाना चाहता हूँ
जानता हूँ रस्म भर भर हैं आज रिश्तें
रस्म ये दिल दिल से निभाना चाहता हूँ
जाति मजहब और वर्णों की प्रथा को
मैं ज़माने से मिटाना चाहता हूँ
चाहता हूँ भूलना पहचान अपनी
मैं मुझे भी तुम बनाना चाहता हूँ
सतीश बंसल
२५.०७.२०१८