उल्फ़त
ऐ दिल के दामनगीर सुनो, हम तुमसे उल्फ़त कर बैठे,
दिल पहले ही जख्मों से भरा, उस पर ये हिमाकत कर बैठे
दिल कहताहै ख़्वाब बहारोंके, सज जाएंगे अब तेरे ज़ानिब
तूभी अपनी तकदीर सजा, वो भी अब नुसरत कर बैठे।
बह जाने दे अश्क निगाहों के, सजने दे तबस्सुम होठों पे,
अब भूल के वक्त गुज़िश्ता को, बढ़ने की जुर्रत कर बैठे।
तुमसे ही है दिल की धड़कन, है तुमसे ही सुर ताल सभी,
आ जाओ अब इन आंखों में, दीदार की हसरत कर बैठे।
मन माने नहीं कोई बंदिश, अब खुले फ़लक उड़ना चाहे,
खामोश हैं लब पलकें हैं झुकी, फिर भी ये हिम्मत कर बैठे
— पुष्पा “स्वाती”