आजादी
वीरों ने अपना लहू बहाया तब जाके ये सुबह आई
आबो हवा स्वतंत्रता की, तब हमने है पाई।
आजादी की कीमत, कोई क्या जानेगा,
जिसने प्राण गंवाए, वो ही पहचानेगा,
हंसते हंसते कितनों ने, अपनी जान लुटाईं।
आबो हवा स्वतंत्रता की, तब हमने है पाई।
आजादी के नीचे जाने, कितने शव पड़े है,
आज हम उन्हीं पे, कितने चैन से खड़े हैं,
सोचते ही सोचते ये, आंख भर आई।
आबो हवा स्वतंत्रता की, तब हमने है पाई।
याद नहीं है किसी को, उनकी वो कुर्बानी,
तड़प तड़प कर मरे थे, बिना खाना पानी,
चढ़ गए सूली पे ऐसे, मानो फूलों सेज सजाई।
आबो हवा स्वतंत्रता की, तब हमने है पाई।
आजादी का मतलब, नहीं होता है मनमानी,
आती है जिम्मेदारी, जो पड़ती है निभानी,
कांटों भरा पथ है, जिसपे चलना पड़े है भाई।
आबो हवा स्वतंत्रता की, तब हमने है पाई।
— पुष्पा ” स्वाती “