गीतिका
निगाहों में राज कैसा छुपाये हुये हो।
दर्द क्या है जो दिल में दबाये हुये हो।।
छोड़ दो कश्ती भंवर मे डूब जाने दो।
मझधार में नइया क्यूं फँसाये हुये हो।।
हो अंजाम जो भी उसका हो जाने दो।
साहिल पे क्यूं आंखें लगाये हुये हो।।
कभी मीठी कभी खट्टी बाते हुई हमसे।
कड़वी पे ही क्यूं दमाग लगाये हुये हो।।
करुँ कैसे तुम पर भरोसा जानिब बता।
रात दिन उल्टी पट्टी हमे पढाये हुये हो।।
नहीं हो खतावार तुम तो कहो सनम।
मेरी हां में हां फिर क्यूं मिलाये हुये हो।।
जानकर विष का प्याला है हमने पिया।
मगर कदम तुम्हारे लड़खड़ाये हुये हो।।
जीत जायेंगे जिन्दगी की जंग हम सही।
रौशनी दूर बहुत मगर तुम जलाये हुये हो।।
हो रही रफ्तार धड़कनों की धीमी बहुत।
चन्द सांसो का मातम क्यूं मनाये हुये हो।।
कह दो खता आज मेरी तुम मुझसे सनम।
सदियों से दर्द दिल मे क्यूं दबाये हुये हो।।
— प्रीती श्रीवास्तव