शुभदायिनी
मां अम्बे की विशेष कृपादृष्टि से आज शुभदा गद्गद हो रही थी. यों तो खुशियां उसे मिलती ही रही थीं, पर इतनी खुशी उसे आज पहली बार मिली थी. घर आकर शुभदा मधुर स्मृतियों में खो गई थी.
श्रद्धा और विश्वास के साथ आज भी शुभदा मां अम्बे के दरबार में हाजिरी लगाने आई थी.
बहुत पहले शुभदा ने एक अनमोल वचन पढ़ा-सुना था- ”श्रद्धा और विश्वास श्रेष्ठ जीवन के दो प्रमुख स्तम्भ हैं.”
उसने इसे किसी कागज पर लिखा था. वह कागज तो समय के चक्र में कहीं विलीन हो गया, पर उसके मन की डायरी पर यह भलीभांति अंकित था. तभी तो उसने अपनी प्यारी बेटी का नाम श्रद्धा और बेटे का नाम विश्वास रखा था. उसके पति सुमेर को भी बच्चों के ये नाम बहुत पसंद थे. आज सुमेर तो नहीं रहे, लेकिन उसकी निशानियां श्रद्धा और विश्वास बराबर उसका संबल बन रही थीं.
सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश की वर्जना के बारे में वह सुनती बहुत कुछ रहती थी, लेकिन वहां जाने की तमन्ना उसने अपने मन में कभी पाली नहीं थी. अलबत्ता मां अंबे के दरबार में ऐसी कोई पाबंदी नहीं थी. किसी भी समय वह मां के दरबार में उपस्थित होकर सेवा कार्य में जुट जाती थी. विश्वास को श्रद्धा के हवाले कर शुभदा दर्शकों के जोड़ों की सेवा करती या बर्तन साफ करती. इसके अलावा भी जो सेवा मिलती, वह खुश होकर प्रेम से करती. कभी उसने खुद को दयनीय न बनने देने का विशेष ध्यान रखा था.
पंडाल में एक तरफ ”सिंदूर खेला” का मांगलिक उत्सव मनाया जा रहा य्हा, दूसरी तरफ सभी पुजारी आज के सर्वश्रेष्ठ सेवादार का निर्णय ले रहे थे. शुभदा के नाम पर सभी पुजारियों के एकमत होने के बाद सेवा में लगी शुभदा को माइक पर पुरस्कार के लिए अपना नाम सुनकर भी विश्वास नहीं हुआ. ”अदना-सी सेवा करने वाली वह क्या इतने बड़े सम्मान के लायक थी!” यह सोचकर वह सेवा में लगी रही. तभी मुख्य पुजारी स्वयं उसे आरती के लिए बुलाने आ गए थे. शुभदा हाथ धोकर अपने बाल और कपड़े ठीक करती हुई मंडप में आई. सबसे पहले उसने मां की विदाई आरती की, फिर पुजारियों के बाद बाकी सबने.
आज मां अम्बे शुभदा के लिए शुभदायिनी बन गई थीं.
इस संदेशयुक्त एक सुखप्रदायिनी लघुकथा में शुभदा ने श्रद्धा और विश्वास से निष्काम सेवा करके हमारे सामने यह मिसाल रखी है, कि एक ही अनमोल वचन को मन में बसाकर उस पर अमल करने से जीवन सुखमय हो जाता है. श्रद्धा और विश्वास श्रेष्ठ जीवन के दो प्रमुख स्तम्भ मानने और उस पर अमल करने से इष्टदेव भी शुभदाता हो जाते हैं.