कविता

पूर्णता

“पूर्णता”

तुम रहते हो मन में मेरे
बनके अभिलाषा,
तुम ही हो मेरे अंतस की
उदगारों की भाषा ।
तुम्ही बसे हो मेरी
आंखों की रोशनी में
तभी संसार है रंगीन ।
सांसों में हो मेरे
तुम्ही ही समाये
अधुरी हूं मैं तुम बिन ।
रगों में बहते
रुधिर में समाये
तुम्ही हो एक एक कण,
तुम समय हो शासित होता
तुमसे प्रतिपल-प्रतिक्षण ।
तुम ही जीवन हो
तुम ही मृत्यु
सब तुम में, तुम सब में ।
तुम धरती में
पवन में तुम
समाये तुम ही नभ में ।
आत्मा तुम हो
परमात्मा तुम
तुम ही सम्पूर्ण चेतना,
तुम तमस हो
तुम ही चन्द्रमा
तुम ही रात की ज्योत्स्ना ।

ज्योत्स्ना पाॅल

पूर्णतः मौलिक रचना।

 

*ज्योत्स्ना पाॅल

भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त , बचपन से बंगला व हिन्दी साहित्य को पढ़ने में रूचि थी । शरत चन्द्र , बंकिमचंद्र, रविन्द्र नाथ टैगोर, विमल मित्र एवं कई अन्य साहित्यकारों को पढ़ते हुए बड़ी हुई । बाद में हिन्दी के प्रति रुचि जागृत हुई तो हिंदी साहित्य में शिक्षा पूरी की । सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर एवं मैथिली शरण गुप्त , मुंशी प्रेमचन्द मेरे प्रिय साहित्यकार हैं । हरिशंकर परसाई, शरत जोशी मेरे प्रिय व्यंग्यकार हैं । मैं मूलतः बंगाली हूं पर वर्तमान में भोपाल मध्यप्रदेश निवासी हूं । हृदय से हिन्दुस्तानी कहलाना पसंद है । ईमेल- [email protected]