पूर्णता
“पूर्णता”
तुम रहते हो मन में मेरे
बनके अभिलाषा,
तुम ही हो मेरे अंतस की
उदगारों की भाषा ।
तुम्ही बसे हो मेरी
आंखों की रोशनी में
तभी संसार है रंगीन ।
सांसों में हो मेरे
तुम्ही ही समाये
अधुरी हूं मैं तुम बिन ।
रगों में बहते
रुधिर में समाये
तुम्ही हो एक एक कण,
तुम समय हो शासित होता
तुमसे प्रतिपल-प्रतिक्षण ।
तुम ही जीवन हो
तुम ही मृत्यु
सब तुम में, तुम सब में ।
तुम धरती में
पवन में तुम
समाये तुम ही नभ में ।
आत्मा तुम हो
परमात्मा तुम
तुम ही सम्पूर्ण चेतना,
तुम तमस हो
तुम ही चन्द्रमा
तुम ही रात की ज्योत्स्ना ।
ज्योत्स्ना पाॅल
पूर्णतः मौलिक रचना।