वह कौन भाग 3 (अंतिम भाग)
सलमा के अब्बू सलमा के लिए इंतजार कर रहे थे क्योंकि उसके कानों में थोड़ी सी कहीं से भनक लगी थी कि गांव में किसी का खून हुआ है। और गांव में दरोगा तथा हवलदार की आवाजाही बढ़ गई है। सलमा के लिए वह चिंतित था। सलमा जैसे ही घर के आंगन में पहुंची उसके अब्बू का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ा..” कहां चली गई थी तुम, घर में बिना कुछ बताए? तुम तो स्कूल गई थी ना, स्कूल की छुट्टी बहुत पहले हो चुकी है। अभी तुम कहां से आ रही हो?”
“मैं अपनी सहेली फातिमा के घर गई थी, उससे नोटबुक लेने के लिए!”.. सलमा ने डरते हुए कहा।
“फातिमा अभी घर आई थी नोटबुक देने के लिए, और तुम्हारे बारे बता कर गई है कि तुम प्रवीण के घर गए थे। कितनी बार तुम्हें मना किया है कि प्रवीण के घर मत जाया करो और उससे मत मिला करो। तुम बाज नहीं आओगी अपनी हरकतों से।”.. सलीम खान चिल्ला पड़ा।
“अब्बा, नवीन का किसी ने खून कर दिया है। हम दोनों एक ही क्लास में पढ़ते थे, फर्ज बनता है मेरा, हालचाल पूछने का। इसलिए गई थी। अच्छा लड़का था वह। हमेशा दूसरों की मदद करता था। मेरी भी पढ़ाई में बहुत मदद करता था।”.. सलमा ने डरते डरते कहा।
“फिर कभी तुम प्रवीण के घर गई और उससे मिली, तो तुम्हारे हाथ पैर तोड़ के रख दूंगा घर में। जाओ अब अंदर जाओ।”.. सलीम खान ने गुर्राते हुए आदेश दिया।
शाम को सूर्यास्त होने के पश्चात चारों ओर अंधेरा छाने लगा था और गांव में कहीं-कहीं इक्का-दुक्का स्ट्रीट लाइट टीम टीम करके चल रही थी। बहुत तेज गति से आती हुई एक कार आकर सलीम खान के घर के सामने एकदम से रुकी। कार की आवाज सुनकर सलीम खान और उसका बेटा इरफान दोनों बाहर निकल कर आ गए तो देखा दरोगा और उसके साथ दो पुलिस सीना ताने उसकी घर की ओर बढ़ रहे थे। सलीम खान और इरफान को पुलिस देख कर थोड़ी सी घबराहट तो हुई, पर.. वे थोड़ी देर में संभल गए।
हाथ जोड़कर नमस्ते करने के बाद सलीम खान ने कहा..” आइए.. आइए.. दरोगा साहब। किस दरकार से आए हैं आप? कोई काम होता तो हमें बुलवा लिया होता। हम ही आ जाते थाने में, आपने क्यों तकल्लुफ की।”
” ये आपका बेटा इरफान है? क्यों इरफान मियां, प्रवीण से आपकी दोस्ती है ना, जान पहचान है ना, प्रवीण के घर आना जाना है ना?”.. एक साथ कई सवाल दाग दिए दरोगा ने।
“जी, दोस्ती क्या, जान पहचान है। कभी-कभी मिल लेते हैं, बात कर लेते हैं। बस.. इतना ही।”.. इरफान ने हाथ जोड़ते हुए कहा।”
इसके बाद दरोगा एकदम से सलीम खान की ओर मुड़ा और झट से पूछा..”आपकी बेटी सलमा का प्रवीण से मोहब्बत है और दोनों मिलते हैं, यह आपको नागवार गुजरता है ना? और इसके लिए आप ने सलमा की पिटाई भी कई बार की है। क्यों मैं सही कह रहा कह रहा हूं ना, सलीम मियां?”
“यह तो अपने घर का मामला है साहब। यह सब तो होता रहता है, बच्चे नादान है, समझते नहीं है ना, हम ठहरे मुसलमान और वह हिंदू। बेटी को कई बार समझाया है यह शादी नहीं हो सकती है, पर.. समझती नहीं है!”.. सलीम खान ने बड़ी मासूमियत दिखाते हुए कहा।
“ठीक है, यह तो घर का मामला है। पर.. मैं जो पूछ रहा हूं उसका जवाब सही सही देना। कल रात को दस-ग्यारह बजे के करीब आप और आपका बेटा इरफान कहां पर थे और क्या कर रहे थे? मुझे सही सही जवाब चाहिए, वरना सही जवाब निकालने में मैं माहिर हूं।”…दरोगा ने सख्ती से कहा।
“हम दोनों घर पर ही थे। खाना खा कर मैं तो आराम कर रहा था और इरफान टीवी में कोई सिनेमा देख रहा था। इतनी रात को आदमी और क्या करेगा?”.. सलीम खान ने बहुत ही भोलेपन का नाटक करते हुए कहा।
“ठीक है भाई! अभी तो मैं जा रहा हूं पर.. दोबारा जरूर मुलाकात होगी।”.. कहकर दरोगा अपनी गाड़ी में जाकर बैठ गया।
सलमा की परीक्षा शुरू होने वाली थी इसलिए वह अपने कमरे में पढ़ाई कर रही थी। उसका कमरा उसके भाई कमरे के बगल में ही था। पढ़ाई में कहा मन लगा रहा था उसका वह तो भाई को और अब्बा को दिखाने के लिए बस नाटक की कर रही थी पढ़ाई का। रात बहुत हो चुकी थी सलमा उठकर दरवाजा दरवाजा बंद करने गई तो उसे बगल के कमरे से बातें करने की आवाज सुनाई दी।..” अब्बा मैंने कहा था ना कि साले के हाथ पैर तोड़ के रख देते हैं खाली। घर में बैठा रहेगा चार छः महीने, तब तक हम सलमा की शादी कहीं पक्की करके उसकी शादी कर देंगे। पर.. आप तो ज्यादा ताव आ गए थे। इतना गुस्सा भी ठीक नहीं है, बेचारे की जान ले ली ना, और.. वह भी प्रवीण समझ कर, नवीन की जान ले ली। सब कुछ गड़बड़ हो गया, अब क्या करेंगे?”
“अरे, तो गांव की बिजली भी तो गुल थी। अंधेरे में कुछ दिखाई ही नहीं दिया नवीन है, कि प्रवीण है। मुझे हाथ पाव ही तोड़ना था स्साले का,पर.. पता नहीं क्यों वहां जाते ही इतना गुस्सा आया कि चला दी उसकी गर्दन पर छुरी।”
“अब तो आप ही भूगतो। मैं तो दरोगा को सब कुछ सच-सच बता दूंगा। मैं मरना नहीं चाहता अभी और ना ही जेल में सड़ना चाहता हूं।”
“अरे.. तो दरोगा को पता कैसे चलेगा कि हमने नवीन को मारा है! कौन बताएगा उसे? चल तू अब सो जा, डर मत। कुछ नहीं होगा, मैं सब संभाल लूंगा।.. कहकर सलीम मियां सोने चला गया।
सलमा थरथर कांप रही थी डर के मारे। गला सूखे जा रहा था उसका। ऐसा लग रहा था अभी बेहोश होकर गिर जाएगी। वह लड़खड़ाकर धम से जाकर अपने बिस्तर में बैठ गई, वरना वही बेहोश होकर गिर पड़ती। वह रात भर सो नहीं पाई। निंद आंखों से कोसों दूर थी। ऐसा लग रहा था रात को कोई भयानक सपना देखा उसने। सपना देखकर पसीना पसीना हुई है जा रही है। अब क्या करेगी, क्या नहीं करेगी, कुछ समझ में नहीं आ रहा था उसे। एक भाई तो, दूसरा अब्बू जान। किस को बचाए और किसको नहीं। उधर नवीन की बातें सोच कर भी उसे बहुत बुरा लग रहा था, एक मासूम की हत्या हो गई थी।
सुबह स्कूल जाने के रास्ते सलमा,रहमान से मिली और उससे कहा कि..” तुम प्रवीण से कहना कि मुझे उससे आज उससे मिलना है, और मिलने की व्यवस्था तुम ही करना। तुम्हारे घर में ही मिलेंगे, उसे जरूरी बातें करनी है। अब्बू और भाई जान को पता नहीं चलना चाहिए इस बात का ध्यान रहे।”.. और वह स्कूल चली गई।
स्कूल से आज थोड़ी जल्दी निकल आई थी सलमा और सीधा रहमान के घर गई छुपते, छुपाते। जाते ही देखा प्रवीण बैठा हुआ है। प्रवीण को देखकर ही वह रोने लग गई, वह अपने आप को संभाल नहीं पाई। तो.. प्रवीण ने पूछा..” क्या बात है सलमा, क्यों बुलाया मुझे और क्यों रो रही हो? तुम कुछ बताओगे तो पता चलेगा ना क्या बात है।”
सलमा थर थर कांप रही थी, उस को कांपते हुए देखा तो प्रवीण ने पकड़ कर उसे कुर्सी पर बैठाया, फिर कहा..” अब बताओ क्या बात है? मुझे क्यों बुलाया?”
“अब्बू.. अब्बू..” सलमा रोए जा रही थी, उसके गले से आवाज निकल ही नहीं रही थी!
“क्या, अब्बु, अब्बु, क्या हुआ तुम्हारे अब्बू को? अब्बू की तबीयत तो ठीक है ना?”
“वह, अब्बू, प्रवीण.. अब्बू ने मारा है नवीन को। नहीं.. भाई जान की कोई गलती नहीं है! भाई जान साथ में थे, पर.. मारा अब्बू ने ही है!”.. सलमा लगातार रोई जा रही थी।
“क्या… सलीम चाचा ने.. ऐसा नहीं हो सकता! ऐसा कैसे संभव है, मैं तो हमेशा सलीम चाचा को एक अच्छा इंसान मानता था।”.. प्रवीण सिर पकड़ कर बैठ गया।
“मेरे भाई जान को बचा लेना प्रवीण। मेरे भाई जान को कुछ नहीं होना चाहिए। भाई जान की कोई गलती नहीं है।”.. सलमा बिलखती जा रही थी।
प्रवीण दोराहे पर खड़ा था। क्या करेगा समझ में कुछ नहीं आ रहा था। एक तरफ अपना छोटा भाई तो दूसरी तरफ सलमा के अब्बू। वह कसम खा चुका है कि अपने भाई को इंसाफ दिलाना है। कसम तोड़ नहीं सकता। उसका भाई बेकसूर था, एक बेकसूर को इंसाफ तो मिलना ही चाहिए।
“सलमा, तुम अब घर जाओ। तुम्हारे अब्बू को पता नहीं चलना चाहिए कि तुम यहां आई थी। चुपके से निकल जाना।”.. प्रवीण ने सलमा से कहा।
फिर वो रहमान की ओर मुखातिब हुआ और रहमान से कहा..” रहमान मेरे दोस्त, यह बात हम दोनों के बीच में रहना चाहिए। किसी को भी यह बात नहीं पता चलनी चाहिए कि सलमा यहां पर आई थी।”
“तुम बेफिक्र रहो प्रवीण, अपने दोस्त पर भरोसा करो!”
“मुझे बहुत भरोसा है और भरोसे से ही तो दुनिया चलती है।”.. प्रवीण ने आंसू पोंछते हुए कहा।
सलमा प्रवीण का हाथ छुड़ाकर जाने लगी तो प्रवीण के दिल में एक टीस सी उठी। क्या पता, अब सलमा से कभी मिल भी पाएगा या नहीं। इस बात का दर्द उसके चेहरे से स्पष्ट झलक रहा था। नवीन की आंखें नम थीं, उसने बड़ी मुश्किल से सलमा की ओर देखते हुए कहा..” सलमा क्या हम फिर कभी मिल पाएंगे?”
“क्यों, नहीं.. हम मिलेंगे! हमारा प्यार पाक, साफ है। हमने कोई गुनाह नहीं किया है।”.. सलमा की आंखों में भी आंसू छलक आए।
“हमें पता है कि हमारा प्यार पवित्र है, परंतु.. हमारे प्यार के कारण एक बेगुनाह की जान चली गई। क्या पता, ईश्वर हमें माफ करेंगे कि नहीं।”.. प्रवीण ने हाथ छुड़ाते हुए कहा।
“हमें अल्लाह पर भरोसा करना पड़ेगा प्रवीण और कोई रास्ता नहीं है।”.. और सलमा ने आगे की ओर कदम बढ़ा दी।
प्रवीण थाने जाकर दरोगा से मिला। उसके तुरंत बाद दरोगा अपनी पुलिस दल को लेकर सलीम खान के घर धावा बोल दिया। सलीम खान तथा रहमान घर में ही थे। गाड़ी की आवाज सुनकर दोनों बाहर निकल आये। दोनों के चेहरे की रंगत उड़ी हुई थी। उनको हथकड़ी पहनाकर गाड़ी में बैठा दिया। गाड़ी में बैठे बैठे सलीम खान सोच रहा था..” किसने हमारे बारे में खबर दी पुलिस को। हमें तो रात को किसीने देखा ही नहीं था, नवीन का खून करते हुए। कहीं ऐसा तो नहीं कि हमारी बातें सलमा ने सुन ली और उसने जाकर प्रवीण को सब कुछ बता दिया। बता भी सकती है, प्रवीण की मोहब्बत में जो पड़ गई है। और नवीन तो उसका सहपाठी था। हमारे लाख मना करने के बावजूद भी उसने प्रवीण से मिलना छोड़ा नहीं था। लड़की बड़ी जिद्दी निकली। पर.. अब क्या कर सकते है, उसने अगर सरकारी गवाह बन कर गवाही दे दी तो.. हम दोनों को या तो फांसी की सजा होगी या फिर आजीवन कारावास की सजा होगी! ऐसे में तो हमारा घर ही बर्बाद हो जाएगा। इससे तो अच्छा है कि मैं अपना जुर्म कबूल कर लूं तो.. रहमान को बचा सकता हूं। भरी जवानी में रहमान को सजा नहीं होनी चाहिए। रहमान बच जाएगा तो घर परिवार संभाल लेगा। और उसने मन ही मन ठान लिया कि मैं थाने में जाकर अपना जुर्म कबूल कर लूंगा।”..अब्बू और भाई जान को जाते हुए देख कर सलमा बर्दाश्त ना कर पाई और घर के अंदर जाकर दरवाजा बंद करके खूब रोई और हाथ ऊपर उठा कर कहने लगी..” ये अल्लाह! पता नहीं मैंने सही किया या गलत, पर.. नवीन बेकसूर था, मासूम था। एक बेकसूर, मासूम को इंसाफ तो मिलना ही चाहिए। मुझसे कोई खता हो तो खता बख्श देना।”
सलीम खान को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई,पर.. जेल जाने से पहले रहमान से उसने एक वादा लिया कि..” तुम जाकर सलमा की शादी प्रवीण से करवा देना। जात बिरादरी वाले अगर कोई अड़चन डालें तो कोर्ट मैरिज करवा देना। मैंने उस मासूम का खून करके जो गुनाह किया है शायद इससे प्रायश्चित हो सके और अल्लाह मेरे परिवार पर रहम करे।”..रहमान ने वही किया, सलमा की शादी हो गई प्रवीण के साथ। प्रवीण की मां निशा सलमा को पसंद करती थी। उसने इस रिश्ते को स्वीकार कर लिया। शादी के बाद निशा ने एक और फैसला लिया। वह सलमा को नर्सिंग करने के लिए शहर भेज दिया ताकि वह सावलंबी बन सके। सलमा की दिलेरी और न्यायप्रियता की चर्चा उस इलाके में चारों ओर होने लगी। उसका यह फैसला गांव में चर्चा का विषय बन गया तथा गांव वाले अपने बेटियों को पढ़ाने के लिए आगे आने लगे। गांव में एक नवीन चेतना जाग उठी….!!!
पूर्णतः मौलिक-ज्योत्स्ना पाॅल।