महाविलोपन और कथित आधुनिक मानव
गंगा सहित देश की सभी नदियाँ प्रदूषण मुक्त रहें, इसके लिए हम सभी भारतीयों और सरकारों को ये प्रतिज्ञा करनी ही होगी, कि हम शहरों के सीवेज {मल-मूत्र-कचरे-रासायनिक -कीटनाशक युक्त जल (पूजा का कचरा भी)} अब भविष्य में अपनी जीवनदायिनी, माँ तुल्य अपनी किसी भी भारत की नदी में नहीं डालेंगे ..ये नदियाँ बगैर किसी खर्च के और बगैर किसी ‘ नमामि गंगे मंत्रालय ‘ के स्वतः ‘स्वच्छ’ और ‘निर्मल’ हो जायेंगी, ध्यान रहे कोई नदी या जलश्रोत अपने उद्गम स्थल से प्रदूषित नहीं निकलता, हम मानव नदियों को प्रदूषित करते हैं और फिर अरबों-खरबों रूपये खर्च कर उन्हें ‘ प्रदूषण मुक्त ‘ करने का ‘नाटक’ करते हैं। आखिर ये ‘नाटक’ क्यों ?, न हम नदियों को प्रदूषित करें न उन्हें प्रदूषण मुक्त करने का नाटक हो !, ज्ञातव्य है मनुष्य ने, जल { भूगर्भीय जल भी }, थल, नभ, वायु, अंतरिक्ष आदि-आदि सभी कुछ अत्यंत प्रदूषित कर अपने स्वयं के ‘ विलुप्तिकरण ‘ का मार्ग स्वयं प्रशस्त कर रहा है, ध्यान रहे इस पृथ्वी से छः करोड़ साल पहले जुरासिक काल में हुए डाइनासोर प्रजाति का महाविलोपन ‘ एक बड़े आग से धधकते उल्कापिंड ‘ की वजह से हुआ था, परन्तु अब आसन्न होने वाला महाविलोपन सिर्फ और सिर्फ, हम मनुष्य प्रजाति के हवश, लालच के वशीभूत होकर किए गये ‘ कुकृत्यों ‘ की वजह से होने वाले भयंरतम् प्रदूषण और प्राकृतिक संसाधनों के असीमित दोहन की वजह से होने जा रहा है। इस पृथ्वी से महाविलोपन की दुखद शुरूआत हो चुकी है… जीवप्रजातियों के विलुप्तिकरण और मनुष्य प्रजाति में कैंसर, श्वसन रोग, हृदयाघात, मस्तिष्क घात आदि-आदि से होने वाली लाखों की संख्या में कालकलवित होना, इसकी ही एक दुखद शुरूआत है, अभी भी संभलने का मौका है, प्रकृति बार-बार चेतावनी दे रही है, ‘ नासमझ ‘ मानव अभी भी न समझकर स्वयं के लिए आत्मघाती सोच को दर्शित कर रहा है…….*।।
— निर्मल कुमार शर्मा