ग़ज़ल
जब मेरा इंतिखाब बोलेगा।
कुल जहां लाजवाब बोलेगा।
लब कुशाई नहीं ज़रा होगी,
आज उनका शबाब बोलेगा।
बात उर्दू ज़बान में होगी,
हर कोई जी जनाब बोलेगा।
आज दावे यहाँ नहीं होंगे,
आज बस इंतिसाब बोलेगा।
आज दरिया हमीद है चुपचुप,
आज उठकर हुबाब बोलेगा।
हमीद कानपुरी
अब्दुल हमीद इदरीसी
179,मीरपुर कैण्ट कानपुर-208004
9795772415