ग़ज़ल
मरके भी रिश्ता मोहब्बत का निभाया होता
हम चले आते अगर तुमने बुलाया होता ।
करीब बैठ कर आंखो की जुबां पढ़ते कभी
खुद रोते कभी हमको भी रुलाया होता।
बड़ी उम्मीद से हम गुल ए बहार तकते हैं
मेरे हिस्से में कभी फूल तो आया होता।
मेरे खामोश से दिल के सितार बज उठते
तूने गर गीत कोई हम को सुनाया होता।
मेरे अपने अपनी बाहों का सहारा देकर
अपना कहके कभी सीने से लगाया होता ।
तेरे दामन में जानिब सिमट के आ जाते
तुमने गर हाथ कभी अपना बढ़ाया होता।
— पावनी जानिब, सीतापुर