मैं कैसे मरा !
मैं कैसे मरा……
ज़िंदगी का हर फ़लसफ़ा,
बस दर्द ही देता गया !
मैं कैसे मरा ये भी ,
मेरा दिल चीर के देखा गया !!
कभी गुमाँ रहता था मुझे,
जिस अपनी देह पर !
कुछ जला कर किया ख़ाक ,
कुछ यूँ ही फेंका गया !!
मैं कैसे मरा ये भी ,
मेरा दिल चीर के देखा गया !!!
ये ज़िंदगी भी एक घूमती भँवर है ! जो डूब गया वो रम गया ,
जो बच गया वो मर गया !!