गज़ल
उम्र भर की वफा से हाथ क्या आया मेरे
दश्त-ए-तनहाई में कोई न साथ था मेरे
यक-ब-यक आज मिले भी तो अजनबी बनकर
हुआ करते थे कल तलक जो आशना मेरे
खिलौना जान के हर कोई खेल जाता है
जाने कब समझेगी जज़्बात ये दुनिया मेरे
मेरी बदनामियों का फायदा ये हुआ मुझको
नामलेवा हैं शहर भर में जा-ब-जा मेरे
जो जा रहे हैं मुझे उम्र भर का गम देकर
उन्हें हर हाल में रखना तू खुश खुदा मेरे
— भरत मल्होत्रा