कविता

चरित्र

डूब रही थी जब एक नैया
बीच धार एक तूफानी रात,
लगी जाकर किनारे तब
तूफानों ने दिया उसका साथ।

पूछा नैया से तब किनारे ने
मित्र पतवार क्यों छोड़ा हाथ,
जिस पर भरोसा किया तुमने
दगा किया उसने तुम्हारे साथ।

कहा नैय्या ने किनारे से
यही दुनिया यही है दस्तूर,
कोई नहीं हाथ बढ़ाता है
जब होता है कोई मजबूर।

जब सुख के दिन आते हैं
गले लगाते सब हंसकर,
देखकर आंखों में आंसू
चल पड़ते हैं पलट कर।

तूफां को समझा दुश्मन
उसी ने निभाया मेरा साथ,
दुश्मन कौन, कौन है दोस्त
नहीं समझ आती यह बात।

बुरे वक्त में जो काम आए
वही होता एक सच्चा मित्र,
बुरे वक्त में समझ आता है
मनुष्यों का असली चरित्र।

पूर्णतः मौलिक-ज्योत्स्ना पाॅल।

*ज्योत्स्ना पाॅल

भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त , बचपन से बंगला व हिन्दी साहित्य को पढ़ने में रूचि थी । शरत चन्द्र , बंकिमचंद्र, रविन्द्र नाथ टैगोर, विमल मित्र एवं कई अन्य साहित्यकारों को पढ़ते हुए बड़ी हुई । बाद में हिन्दी के प्रति रुचि जागृत हुई तो हिंदी साहित्य में शिक्षा पूरी की । सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर एवं मैथिली शरण गुप्त , मुंशी प्रेमचन्द मेरे प्रिय साहित्यकार हैं । हरिशंकर परसाई, शरत जोशी मेरे प्रिय व्यंग्यकार हैं । मैं मूलतः बंगाली हूं पर वर्तमान में भोपाल मध्यप्रदेश निवासी हूं । हृदय से हिन्दुस्तानी कहलाना पसंद है । ईमेल- [email protected]