कविता

दर्द दे गया

दर्द दे गया जिन्दगी में वो इस कदर
अब तो बस इस दिल में वीरानगी रह गई।

तेरी बेवफाई के गम के इतने सताये हुये है
कि सारी खुशियाँ धरी की धरी रह गई।

बेबस किया है तेरी जुदाई ने इतना
मेरी आंखों की पोरों पर बस नमी रह गई।

लौटकर आने की जुस्तजु लिये बैठे है
आंख बस दरवाज़े पर ही लगी रह गई।

बीत गया एक अरसा दिदार की हसरत में
बेसबब ये ख्वाहिशें युं ही दबी रह गई ।

उजडे़ दरख्तों पर आयेंगीं फिर रौनकें
इस उम्मीद में कुछ पत्तियां लदी रह गई।

खाली मन की दीवारों पर न आयेंगे नये रंग
दिमाग की सारी कसरतें धरी रह गई।

फाका परस्ती है अब इतनी
पेट पर ये पट्टी बन्धी रह गई ।

अल्पना हर्ष

अल्पना हर्ष

जन्मतिथी 24/6/1976 शिक्षा - एम फिल इतिहास ,एम .ए इतिहास ,समाजशास्त्र , बी. एड पिता श्री अशोक व्यास माता हेमलता व्यास पति डा. मनोज हर्ष प्रकाशित कृतियाँ - दीपशिखा, शब्द गंगा, अनकहे जज्बात (साझा काव्यसंंग्रह ) समाचारपत्रों मे लघुकथायें व कविताएँ प्रकाशित (लोकजंग, जनसेवा मेल, शिखर विजय, दैनिक सीमा किरण, नवप्रदेश , हमारा मैट्रौ इत्यादि में ) मोबाईल न. 9982109138 e.mail id - alpanaharsh0@gmail.com बीकानेर, राजस्थान