कविता

दर्द मिटा दूँगा

तेरे दर्द को अल्फ़ाज़ दूंगा
मत सोच तू अकेला हैं
हर कदम पर तेरा साथ दूंगा।

दर्द का समुंदर जो तेरे अंदर
नित्य रफ़्ता रफ़्ता बहता है
उसको भी एक दिन किनारा दूंगा।

जिस ख़ामोशी में समा रखा है
छट पटाता तूने दर्द अपना
उसको भी एक दिन आवाज़ दूंगा।

एक शमा जो तूने रौशना रखी है
खुद को ही मर मिटाने को
बुझा उसको एक दिन तुम्हें
अपने गले लगा लूंगा।

जो अश़्क बहाते हो तुम
चोरी-चोरी बैठे किसी कोने में
उनको पोछकर तेरे चेहरे पर
जादू सी मुसकुराहट ला दूँगा।

राजीव डोगरा

*डॉ. राजीव डोगरा

भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा कांगड़ा हिमाचल प्रदेश Email- [email protected] M- 9876777233