कविता

कविता – मेरी माँ

मेरे जन्म के बाद माँ के गोद में नर्स मुझे फरमाया,

पर मुझे लगा कौन सा मखमल के बिस्तर पर सुलाया ।
जब मैं बड़ा हुआ तो मुझे दुनिया ने ये बात बताया,
अरे पागल वह मखमल का बिस्तर नहीं
तेरी मां के दोनो हाथो पर तुझे नर्स ने सुलाया।।
किसी की नजर ना लगे इसलिये, उन्होंने तुझे ताबीज पहनाया,
उससे भी उनका दिल ना माना तो तुझे काला टिका भी लगाया ।।
हमेशा ऊपर वाले से तेरे लिए ही शिफारिश लगया,
पता नहीं रब को इतना क्या फरमाया ।।
कभी मंदिर कभी मस्जिद कभी गुरुद्वारा तुम्हे घुमाया,
बाहर बैठे भिखारी को तेरे हाथो से ही भोजन कराया ।।
तुझे अगर चोट लगे तो अपने हाथों का निवाला छोड़कर पहले तुझे सहलाया,
अपनी गोद में रख के प्यार से दबाया ।।
किस कदर बातों में उलझा कर तुझे खाना खिलाया,
कितनी प्यारी-प्यारी लोरी, सुना कर तुझे हैं सुलाया ।।
जब मैं बड़ा हुआ तो वह मुझे दुनिया ने बताया,
अरे पागल तू तो ऐसी माँ बड़ी शिद्दत से है पाया ।।
अब जाकर मुझे यह समझ में आया,
उनकी जान में मैं ऐसे ही नहीं बस पाया..!
इसी कदर उन्होंने मुझे प्यारा कह कर हमेशा बुलाया ।।
मेरी मां तेरा उपकार का भार तो हम पर इतना है..
मैं कितना भी करू परोपकार, पर तेरा प्यार का उधार तो उतना ही हैं ।।
— शीतांशु मणि

शीतांशु मणि

मुजफ्फरपुर, बिहार मोबाइल नम्बर: 9304060661 पिन : 843106