लोग जा चुके घर को सारे
लोग जा चुके घर को सारे, मुझको यूँ बेज़ार छोड़ के। फिर भी मैं बैठा हूँ, जाऊं कैसे ये बाजार छोड़ के।।
जिनके दम पे आँख मूँद, हम बीच धार में उतरे थे।
ज़रा सी वक्ती आंधी में, वो भागे पतवार छोड़ के।।
वक्त नहीं है, वक्त नहीं है चीख रही सारी दुनिया।
पर दूजों को झाँक रहे, अपने घर और द्वार छोड़ के।।
समय आखिरी देख शख्स हर, घबरा कर यूँ ही बोले।
बहुत बुरा है फिर भी, जाया जाए न संसार छोड़ के।।
जाने कब तक राह बुहारें दो जोड़ी बूढ़ी अँखियाँ।
निकल चुके बच्चे तो घर से, सामां ये बेकार छोड़ के।।
बंटवारे के बाद भी यारों यहाँ नहीं कुछ बदला है।
सब जैसे का तैसा ठहरा, बीच की एक दीवार छोड़ के।।