गीतिका/ग़ज़लपद्य साहित्य

आहटें चौखटों तक

आहटें, चौखटों तक अब मेरी, आती कम हैं।

औ’ हवाएं भी खिड़कियों को हिलाती कम हैं।।

गलियाँ सूनी, बदमिज़ाज़ सड़कें हो चली जब।
मेरी आँखें भी इंतज़ार सजाती कम हैं।।

वजह कोई और होगी, आँख ये नम होने की।
तेरी कसम, तेरी तो याद भी आती कम है।।

‘रीढ़’ तालीम ने उसकी जबसे सीधी है करी।
घड़ी घड़ी बेवजह खुद को झुकाती कम है।।

रोज़ ही पहले से ज्यादा, स्याह काली ये लगे।
रात भी तारों के दियों को जलाती कम है।।

जलन की आग में खुद ही जल रही दुनिया।
फेेंक माचिस ‘लहर’, अब ये जलाती कम है।।

*डॉ. मीनाक्षी शर्मा

सहायक अध्यापिका जन्म तिथि- 11/07/1975 साहिबाबाद ग़ाज़ियाबाद फोन नं -9716006178 विधा- कविता,गीत, ग़ज़लें, बाल कथा, लघुकथा