एवरेस्ट पर पर्वतारोहियों की बढ़ती भीड़
पिछले दिनोंमाऊँट एवरेस्ट के बारे में एक स्तब्ध कर देने वाला समाचार आया कि दुनिया की इस सबसे ऊँची चोटी पर इतनी भीड़ जमा हो गई है कि वहाँ जाम की स्थिति पैदा हो गई है, जिससे लोगों को उस सर्वोच्च शिखर पर चढ़ने के लिए कई-कई घंटों इन्तजार करने से उनके पास उपलब्ध ऑक्सीजन समाप्त हो गया जिससे उनकी मृत्यु हो गई ।
अनुभवी पर्वतारोही विशेषज्ञों के अनुसार, इसका कारण माऊँट एवरेस्ट पर जाने के लिए नेपाल सरकार के लिए कोई विशिष्ट नियम कायदे नहीं हैं,न ही पर्वतारोहियों की संख्या को नियन्त्रित करने का कोई स्वीकृत विधान ! उनका एक मात्र उद्देश्य अधिक से अधिक पर्वतारोहियों से ज्यादे से ज्यादे विदेशी मुद्रा अर्जित करना रह गया है । यह हिमालय के लिए, वहाँ के ग्लेशियरों के लिए ,वहाँ से निकलने वाली नदियों के लिए , उन पर आश्रित लोगों के लिए बहुत ही दु:खद बात है ।
एक अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक संगठन इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटिग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट के अनुसार, जिसमें २२ वैज्ञानिक तौर पर उन्नतशील देशों के २१० वैज्ञानिकों और ३५० शोधकर्ताओं ने हिन्दूकुश हिमालय एसेसमेंट नामक अध्ययन के तहत हिमालय के तेजी से पिघलते ग्लेशियरों का पिछले पाँच वर्षों तक गहन अध्ययन किया । इस अध्ययन के अनुसार अगर मानव द्वारा प्रदूषण और कार्बन उत्सर्जन की गति यही बनी रही तो भी दुनिया के तापमान के १.५ डिग्री सेल्सियस ही बढ़ती रहने से भी सन् २१०० तक इन ग्लेशियरों के एक तिहाईर्ग्लेशियर पिघल जाएंगे और अगर यह तापमान बढ़कर २ डिग्री सेल्सियस हो गया तब इनका दो तिहाई हिस्सा सदा के लिए पिघल जायेगा ।
इन वैज्ञानिकों के अनुसार गंगा के उद्गम स्त्रोत के मुख्य ग्लेशियर का एक प्रमुख सहायक ग्लेशियर ,जिसे चतुरंगी गलेशियर कहते हैं,वह पिछले २७ साल में भारतीय महाद्वीप में भयंकर प्रदूषण, हिमालयी क्षेत्र में अंधाधुंध वनों के विनाश, नदियों व वायु प्रदूषण के चलते ११२७ मीटर से भी अधिक पिघल चुका है ,जिससे इसके बर्फ में ०.१३९ घन किलोमीटर की चिंताजनक कमी हुई है ।
जिन नदियों के किनारे, जिनकी बदौलत मानव सभ्यता फली-फूली और विकसित हुई ,जिन नदियों के उपजाऊ मैदानों में,जिनके पानी से सिंचित खेत से मानव जीवन की सबसे बड़ी जीवन की आवश्यकता भूख की समस्या को, अपने प्रचुर मात्रा में अन्न उपजा कर देने वाली, अपने अक्ष्क्षुण और निरंतर जल प्रवाह से प्राचीन काल से ही मानव के व्यापार में अपना अमूल्य योगदान देने वाली, अपने अमृततुल्य मीठे जल से समस्त जीवजगत की प्यास बुझाने वाली और इस प्रकृति में लाखों जलचरों की आश्रय स्थल रहीं, हमारी मातृतुल्य नदियों को अब दम घोंटने और प्राण लेने के लिए वही मानव अब आमादा है ,जिनका लाखों वर्षों से नदियों ने अपनी गोदी मेंपुत्रवत पालन किया ।
भारत के सिरमौर कहे जाने वाले हिमालय से निकलने वाली समस्त नदियों पर जिनमें वे नदियां जो सीधे भारत की भूमि पर दक्षिण दिशा में आ जाती हैं , जैसे गंगा, सिंधु, यमुना, घाघरा आदि और वे भी जो हिमालय से उत्तर तरफ से उतर कर पूरब से होते हुए पुन: भारत भूमि में प्रवेश कर जातीं हैं जैसे यांगत्सी, मीकांग और ब्रह्मपुत्र जैसी नदियों के उद्गम स्त्रोत हिमालय के शिखरों पर लाखों-करोड़ों साल से बर्फिले ग्लेशियरों पर मानव द्वारा उत्पन्न प्रदूषण और अन्य विषाक्त गैसों के भयंकर उत्सर्जन से वैश्विक तौर पर इस समूची पृथ्वी के तापक्रम के बढ़ने से ग्लेशियरों के अस्तित्व पर भयंकर संकट मंडरा रहा है ।
— निर्मलकुमार शर्मा