इतिहास

26 जुलाई पर विशेष – कारगिल विजय के 20 वर्ष

26 जुलाई 1999 वह दिन था जब पाकिस्तान ने भारतीय सेना के आगे घुटने टेक दिए थे। सीमा पार घुसपैठ करने वाले पाक के पास भारत के सामने झुकने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था। भारतीय जवानों के साहस, वीरता और जज्बे के सामने पड़ोसी मुल्क की सेना हार मान चुकी थी और तत्कालीन पाक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के समक्ष शरणागत थे। करीब दो महीने तक चलने वाले इस युद्ध में जीत के बाद दुनिया को भारत की ताकत का अहसास हुआ। क्योंकि जहां पर पाक सैनिकों ने घुसपैठ की थी वह अत्यंत दुर्गम क्षेत्र था पहले से वहां पहाड़ियों पर कब्जा किये बैठे पाक सैनिकों ने बंकर बना लिये थे। भारतीय सेना नीचे थी वह ऊपर थे। यही कारण था कि दुनिया की सबसे ऊंचे रणक्षेत्र में लड़ा गया कारगिल युद्ध को जीतने में जांबाजों के पराक्रम का लोहा दुनिया ने माना।

पाकिस्तान भारत से प्रत्यक्ष चार —चार युद्ध हारने के बाद उसको यह समझ आ गयी है कि वह भारत से सीधा मुकाबला नहीं कर सकता। इसके लिए वह आतंकवादियों का सहारा लेता है।  शायद उसका यह मंसूबा कभी पूरा नहीं होगा लेकिन दुश्मन को कभी कमजोर नहीं समझना चाहिए। क्योंकि भारत में आतंक फैलाने के नाम पर ही पाक को चीन से भारी मात्रा में हथियार और आर्थिक मद्दद मिलती है। कभी —कभी वह पुलवामा हमला जैसी बड़ी आतंकी वारदात को अंजाम देने में सफल भी हो जाता है। भले ही इसके बदले उसे सर्जिकल एस्ट्राइक व एअर स्ट्राइक का स्वाद क्यों न चखना पड़े लेकिन वह अपनी आदतों से बाज नहीं आता है। क्योंकि भारत ने जब—जब पाकिस्तान से रिश्ते सुधारने का प्रयास किया उसने पीठ में खंजर ही भोंकने का काम किया है। चाहे विभाजन के तत्काल बाद कबाईलियों के रूप में कश्मीर में घुसपैठ हो चाहे 1965 का युद्ध हो या फिर लाहौर बस सेवा के बाद कारगिल का युद्ध रहा हो। अटल बिहारी वाजपेयी 19 फरवरी 1999 को बस लेकर लाहौर पहुंचे और इसी वर्ष मई में भारत को कारगिल की जंग तोहफे में मिली।

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने अमेरिका में स्वीकार किया है कि उनके देश में 30 से 40 हजार आतंकवादी हैं। इससे भारत जो बातें वर्षों से कहता आ रहा है उसकी पुष्टि हुई है।  प्रश्न यह है कि उनकी जानकारी के बावजूद इमरान खान सरकार ने आतंकी गतिविधियों पर नकेल कसने के लिए क्या कदम उठाए। हालांकि उन्होंने कहा है कि हमारी सरकार ने आतंकी गुटों को निहत्था करना शुरू कर दिया है। लेकिन इस बात में कितनी सच्चाई है यह नहीं कहा जा सकता। लेकिन इमरान खान पहले ऐसे प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने सच्चाई स्वीकार की है।
आज से करीब 20 वर्ष पहले 26 जुलाई 1999 को कारगिल की पहाड़ियों से पाकिस्तान के आतंकी घुसपैठियों को भारत के जांबाज वीर  सैनिकों ने सफलतापूर्वक खदेड़कर कर विजय हासिल की थी।
इस दिन को हर वर्ष विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। करीब दो महीने तक चला कारगिल युद्ध भारतीय सेना के साहस और जांबाजी का ऐसा उदाहरण है जिस पर हर देशवासी को गर्व होना चाहिए। कारगिल में लड़ी गई इस जंग में देश ने लगभग 527 से ज्यादा वीर योद्धाओं को खोया था वहीं 1300 से ज्यादा घायल हुए थे।
पहले तो पाकिस्तान ने दावा किया कि लड़ने वाले सभी कश्मीरी उग्रवादी हैं, लेकिन युद्ध में बरामद हुए दस्तावेज़ों से साबित हुआ कि पाकिस्तान की सेना प्रत्यक्ष रूप में इस युद्ध में शामिल थी। लगभग 30,000 भारतीय सैनिक और करीब 5,000 घुसपैठिए इस युद्ध में शामिल थे। भारतीय सेना और वायुसेना ने पाकिस्तान के कब्ज़े वाली जगहों पर हमला किया और धीरे-धीरे  पाकिस्तान को सीमा पार वापिस जाने को मजबूर किया।

वैसे तो पाकिस्तान ने इस युद्ध की शुरूआत 03 मई 1999 को ही कर दी थी जब उसने कारगिल की ऊँची पहाडि़यों पर 5,000 सैनिकों के साथ घुसपैठ कर कब्जा जमा लिया था। 3 मई 1999 को एक चरवाहे ने भारतीय सेना को कारगिल में पाकिस्तान सेना के घुसपैठ कर कब्जा जमा लेने की सूचनी दी। इसके बाद 05 मई को भारतीय सेना की पेट्रोलिंग टीम जानकारी लेने कारगिल पहुँची तो पाकिस्तानी सेना ने उन्हें पकड़ लिया और उनमें से 5 की हत्या कर दी। इस बात की जानकारी जब भारत सरकार को मिली तो सेना ने पाक सैनिकों को खदेड़ने के लिए ऑपरेशन विजय चलाया। भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के खिलाफ मिग-27 और मिग-29 का भी इस्तेमाल किया। इसके बाद जहाँ पाकिस्तान ने कब्जा किया था वहाँ बम गिराए गए। इसके अलावा मिग-29 की सहायता से पाकिस्तान के कई ठिकानों पर आर-77 मिसाइलों से भारतीय सेना ने हमला किया।
एक रिपोर्ट के मुताबिक सेना इस युद्ध में बड़ी संख्या में रॉकेट और बमों का इस्तेमाल किया गया। इस दौरान करीब दो लाख पचास हजार गोले दागे गए। वहीं 5,000 बम फायर करने के लिए 300 से ज्यादा मोर्टार, तोपों और रॉकेटों का इस्तेमाल किया गया। लड़ाई के 17 दिनों में हर रोज प्रति मिनट में एक राउंड फायर किया गया। बताया जाता है कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यही एक ऐसा युद्ध था जिसमें दुश्मन देश की सेना पर इतनी बड़ी संख्या में बमबारी की गई थी।
भारतीय सीमा में घुसपैठ के बाद अटल बिहारी बाजपेई ने फोन पर पाक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को लताड़ा कि एक तरफ आप हमारा लाहौर में गर्मजोशी से स्वागत करते हैं दूसरी तरफ हमारी सीमा में घुसपैठ कराते हैं यह आपने ठीक नहीं किया। इसके परिणाम आपको भुगतने पड़ेंगे। फिर क्या था सेना ने हमले शुरू कर दिये। सारा देश युद्ध का परिणाम जानने को उत्सुक था।
काई भी युद्ध या दैवीय आपदा रही हो संघ के स्वयंसेवकों ने सबसे पहले और सबसे आगे आकर कार्य किया है। कारगिल के युद्ध में भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं ने देश के मनोबल को बनाये रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस युद्ध में संघ के स्वयंसेवकों ने घायलों की सेवा से लेकर रक्तदान में अग्रणी भूमिका निभाई। इसके अलावा संकट काल में देश के सामान्य नागरिकों का मनोबल बनाये रखना सबसे जरूरी होता है क्योंकि उस समय तरह—तरह की अफवाहें विरोधी लोग फैलाते हैं। कौन देश किसके साथ जायेगा फिर युद्ध कितने दिन तक चलेगा। फिर सीमा पर शहीद हो रहे सैनिकों की लाशें देश के विभिन्न भागों में पहुंचने से क्षोभ व शोक के वातावरण के बीच का धैर्य व संयम का परिचय देना जरूरी होता है। ऐसे समय में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन सरसंघचालक प्रो. राजेन्द्र सिंह उपाख्य रज्जू भैया ने संघ के पदाधिकारियों को गांव—गांव जाने का निर्देश दिया। शीर्ष नेतृत्व के निर्देश पर संघ के पदाधिकारियों का कार्यकर्ताओं ने प्रवास कराकर जगह—जगह मीटिंग व सभाएं कराई।

वहीं प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और रक्षामंत्री जार्ज फर्नांडीज भी जवानों का हौसला बढ़ाने के लिए 13 जून 1999 को खुद युद्ध भूमि में पहुंच गये थे। ऐसे में उनको निशाना बनाने के लिए पाकिस्तान की ओर से जमकर फायरिंग हुई। इसके बावजूद प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री को शहर के जांबाज कर्नल जीपीएस कौशिक ने रणभूमि के उस हिस्से तक पहुंचाया जहां से युद्ध की पूरी प्लानिंग की गई।
आज भी कारगिल की पहाड़ियों पर बिखरा पाकिस्तानी सेना का गोला-बारूद और अन्य साजो-सामान भारतीय शूरवीरों की वीरता और बलिदान की गाथा सुनाता है कि ऊंची पहाड़ियों पर बंकरों में घात लगाए बैठे पाकिस्तानी सैनिकों को खदेड़ने के लिए भारतीय जांबाजों को कितनी मुश्किलों का सामना करना पड़ा होगा।

प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए अटल बिहारी वाजपेयी को पाक के साथ शांति की कोशिशों के बदले वाजपेयी को एक के बाद संकटों का सामना करना पड़ा। कारगिल का युद्ध फिर, कंधार हाइजैक और फिर संसद पर हमला। लेकिन इतनी चुनौतियां भी उनके मनोबल को छू नहीं सकी। हर बार उन्‍होंने असाधारण नेतृत्‍वकर्ता का परिचय दिया और संकट से देश को बाहर निकाला। हर तरह के दबाव में भी वाजपेयी दृढ़ रहे राष्ट्र के स्वाभिमान के साथ समझौता नहीं किया।
यही कारण रहा कि कारगिल युद्ध के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने युद्ध के समय अटल जी को पाक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के साथ बातचीत के लिए बुलाया। अटल जी ने अमेरिका आने से साफ इनकार कर दिया था। अटल जी ने कहा कि हम पाकिस्‍तानी सेना को पाक सीमा में वापस देखना चाहते हैं। इसके बाद बिल क्लिंटन ने शरीफ को बताया कि वाजपेयी सिर्फ पाकिस्‍तानी सेना को सीमा में वापस देखना चाहते हैं। इसके बाद पाक को अमेरिका ने कहा कि वह अपनी सेना तुरंत भारतीय क्षेत्र से हटाए नहीं तो हम आपकी मद्द नहीं कर पायेंगे।
कारगिल युद्ध के दौरान अमेरिका ने एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए भारत को सूचित किया कि पाक परमाणु हमला कर सकता है। अटल जी ने स्पष्ट कहा था कि अगर पाक ने परमाणु हमला करने की जुर्रत की तो पाकिस्तान विश्व के नक्शे से गायब हो जायेगा। कुछ इसी प्रकार का संदेश वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पुलवामा हमले के बाद एअर स्ट्राईक कर पाकिस्तान को देने का काम किया है।

बृजनन्दन राजू 

बृज नन्दन यादव

संवाददाता, हिंदुस्थान समाचार