आँखे
आँखे
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हाय दिल को लुभा गयी आँखे |
रोग दिल का लगा गयी आँखे |
नींद पलकों से गुम हुयी अब तो –
ख्वाब लाखों सजा गयीं आँखें |
तीर ऐसा चला नज़र का था –
तिश्नगी को बढा गयी आँखे |
राज दिल में दबा रखे थे जो –
हाय पल में बता गयीं आँखें |
जो मोहब्बत से दूर रहते थे –
उनको आशिक बना गयीं आँखें|
मयकदे से जो दूर रहते थे-
उनको पीना सिखा गयीं आँखें|
उनकी नजरों से जब मिलीं नजरें-
मुझको मुझसे चुरा गयी आँखें |
एक नयी रागिनी बजी ऐसी –
मुझको अपना बना गयी आँखें|
मैं तो खाली सी एक ‘मंजूषा ‘थी
प्यार दिल में बसा गयी आँखें |9
मंजूषा श्रीवास्तव’मृदुल’