गीतिका/ग़ज़ल

आँखे

आँखे
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हाय दिल को लुभा गयी आँखे |
रोग दिल का लगा गयी आँखे |

नींद पलकों से गुम हुयी अब तो –
ख्वाब लाखों सजा गयीं आँखें |

तीर ऐसा चला नज़र का था –
तिश्नगी को बढा गयी आँखे |

राज दिल में दबा रखे थे जो –
हाय पल में बता गयीं आँखें |

जो मोहब्बत से दूर रहते थे –
उनको आशिक बना गयीं आँखें|

मयकदे से जो दूर रहते थे-
उनको पीना सिखा गयीं आँखें|

उनकी नजरों से जब मिलीं नजरें-
मुझको मुझसे चुरा गयी आँखें |

एक नयी रागिनी बजी ऐसी –
मुझको अपना बना गयी आँखें|

मैं तो खाली सी एक ‘मंजूषा ‘थी
प्यार दिल में बसा गयी आँखें |9
मंजूषा श्रीवास्तव’मृदुल’

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016