चाहता है
मेरी मेहनत पे जीना चाहता है
वो मेरा ख़ून पीना चाहता है
संवरना है मुझे भी आईने में
किसी का दिल हसीना चाहता है
ग़रीबी इतनी अंदर आ गई है
फटा कपड़ा भी सीना चाहता है
वही जिनसे हमारी दोस्ती थी
हमारा ख़ून पीना चाहता है
बड़ी उल्फ़त से माँ को रख रहा है
वो घर में ही मदीना चाहता है
मुझे ही चून लेगा शह्र भर में
वो लड़का है नगीना चाहता है
भला बोलो बुराई क्या है इसमें
जो कुछ पैसा महीना चाहता है
— डा जियाउर रहमान जाफरी