गीतिका/ग़ज़ल

ये फ़न सीखा है

वो इक वक़्फ़ा ही लेकिन पास आकर
चला आ जाता है वो मुझको हंसाकर
किसी के दिल को कैसे जीतना है
ये फ़न सीखा है हमने मुस्कुराकर
नहीं हम चालबाज़ी कर रहे हैं
वो क्या देखेंगे मुझको आज़माकर
मोहब्बत में गुज़ारें उम्र अपनी
चलो हम फेक दें नफ़रत उठाकर
यक़ीनन वो भी फिर मजबूर होगा
मिलेंगे जब गिले शिकवे भुलाकर
जो गुज़रा वक़्त फिर न पास आया
बहुत सोये चिराग़ों को बुझाकर

— डा जियाउर रहमान जाफरी

डॉ. जियाउर रहमान जाफरी

जन्म -मुज़फ़रा, बेगूसराय -हिन्दी, अंग्रेजी, शिक्षा शास्त्र में एम ए, बी एड, और परकारिता, हिन्दी से पीएच डी -खुले दरीचे की खुशबू खुशबू छू कर आई है परवीन शाकिर की शायरी चाँद हमारी मुट्ठी में है मैं आपी से नहीं बोलती लड़की तब हंसती है (संपादन ) .......आदि पुस्तकें प्रकाशित -हिन्दी, उर्दू, और मैथिली की पत्र पत्रिकाओं में नियमित लेखन -बिहार सरकार का आपदा प्रबंधन लेखन पुरुस्कार प्राप्त -आकाशवाणी और टीवी चैनल्स में नियमित प्रसारण -फिलवक़्त -बिहार सरकार में अध्यापन संपर्क -माफ़ी, अस्थावां, नालंदा, बिहार 8031071 मो- 9934847941, 6205254255