ये फ़न सीखा है
वो इक वक़्फ़ा ही लेकिन पास आकर
चला आ जाता है वो मुझको हंसाकर
किसी के दिल को कैसे जीतना है
ये फ़न सीखा है हमने मुस्कुराकर
नहीं हम चालबाज़ी कर रहे हैं
वो क्या देखेंगे मुझको आज़माकर
मोहब्बत में गुज़ारें उम्र अपनी
चलो हम फेक दें नफ़रत उठाकर
यक़ीनन वो भी फिर मजबूर होगा
मिलेंगे जब गिले शिकवे भुलाकर
जो गुज़रा वक़्त फिर न पास आया
बहुत सोये चिराग़ों को बुझाकर
— डा जियाउर रहमान जाफरी