कविता

आज के रिश्ते

न अब वो प्यार बाकी है
न एहसास बाकी है
अच्छा ही हुआ कागा
तूने जो छोड़ दिया मेरे घर के छत की मुंडेर पे आना
देता था तू संदेशा
आने वाला है कोई आगंतुक
किसी पर वक़्त नहीं
रहते भी दूर दूर हैं
शहरों की तो है दूरी पर दिल से भी दूर हैं
भाई भाई में तनातनी है
रंजिशें पाले बैठे हैं इक दूसरे से
बहन भाई से है रुसवा
भाई बहन से किए बैठा है रुसवा
रुसवा रुसवाई का दौर जारी है
नाना नानी का घर भी छूट गया
हुए जब से वो गोकुलवासी हैं
अच्छा हुआ कागा जो तू मेरे घर की मुंडेर पे आना छोड़ गया
मेरे घर में अब आंगन भी तो न रहा
जिसकी छत पर बैठ कर काव काव जो तू करता
अच्छा हुआ कागा जो तू मेरे घर का मुंडेर छोड़ गया
जब होगा कभी मेरे घर में आंगन
तुझको है मेरा निमंत्रण
तू जरूर आना
तू जरूर आना
रहेगा मुझे तेरा इंतजार इंतजार और इंतजार

— ब्रजेश

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020