लघुकथा

विश्वास

”तिराहे की पीर कोई-कोई ही जान सकता है, या तो प्रेमी या फिर पागल!” मन की वल्गा के एक छोर ने कहा.

”सही, बिलकुल सही, जा के पांव न फटी बिवाई वो क्या जाने पीर पराई.” दूसरा छोर मुखर हुआ.

”अपने चलाने वाले चालक के बारे में भी तो सोचो न!” तीसरे छोर ने कहा.

”यह चलाना भी कोई चलाना होता है, तो फिर हाँकना क्या होता है?”

”चालक पर विश्वास न करने से हम दिग्भ्रमित होते हैं, हम दिग्भ्रमित होते हैं तो दिशाएं उद्भ्रांत हो जाती हैं, दिशाएं उद्भ्रांत होती हैं तो सारथि गुमराह हो जाता है. विश्वास से विश्वास होता है.”

शायद यह सबके अंतर्मन की आवाज थी.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244