पद्मभूषण डॉ. बनफूल की जन्मभूमि में उसे नहीं जानते युवा चेहरे
‘भुवन शोम’, ‘हाटे बजारे’ आदि राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार प्राप्त बांग्ला उपन्यासों के लेखक डॉ. बलायचंद्र मुखोपाध्याय ‘बनफूल’ की जन्मभूमि कटिहार जिले के मनिहारी नगर पंचायत में है। वे पेशे से चिकित्सक थे, कभी मुर्शिदाबाद, भागलपुर और अंतिम रूप से कोलकाता बस गए ।
वे काफी सम्मानित व्यक्ति थे, उन्हें विश्व भारती शांति निकेतन का ‘रवींद्र पुरस्कार’ समेत भारत सरकार से ‘पद्मभूषण’ भी प्राप्त हुए थे । ‘हाटे बजारे एक्सप्रेस’ ट्रेन का नामकरण उन्हीं के उपन्यास के नाम पर है, जो मनिहारी हाट से कलकत्ता बाज़ार तक की कहानी लिए है । मनिहारी में उनका घर उसी रूप में अब भी है, जिसे छोड़ वो कभी कोलकाता जा बसे थे। उनके सगे भतीजे मुकुल’दा नियमित रूप से यहाँ रहते हैं । अभी उनका घर व्याख्याता श्री आशीष कुमार सिंह जी के देखरेख में है, उन्होंने उदासी लिए कहा– मनिहारी के बुजुर्गजन ही उन्हें जान रहे हैं, 90 फीसदी युवा ‘बनफूल’ को नहीं जानते हैं ! उनकी जन्मभूमि में कुछ साहित्यिक अभिरूचिवाले बुजुर्गजनों द्वारा प्रतिवर्ष उनकी जयंती मना भर ली जाती है !
कटिहार जिले के मनिहारी के कुछ हिस्से के जमींदार सत्तो बाबू के यहाँ अपना फूलो बाबू यानी बलाई चंद मुखर्जी ‘बनफूल’ का जन्म मनिहारी में उनके पुत्र के रुप में 19 जुलाई 1899 को हुआ था । डॉक्टरी व पैथोलॉजी की पढ़ाई पीएमसीएच से पूर्ण की, जो कि उस समय कलकत्ता विश्वविद्यालय में था। सरकारी चिकित्सक के रूप में पहली पोस्टिंग अज़ीमगंज पीएचसी, भागलपुर में पाई, इसी भागलपुर में ‘देवदास’ वाले शरतचंद्र का बचपन बीता था, शायद लेखन का चस्का इसी के सापेक्ष प्रतिबद्ध हुआ हो, अतिशयोक्ति नहीं मानी जा सकती ! बांग्ला लेखक होने के नाते कालांतर में कोलकाता बस गए, किन्तु उनकी कहानियों और उपन्यासों, यथा- भुवन शोम, हाटे बज़ारे आदि पर राष्ट्रीय पुरस्कृत फिल्में, तो फ़िल्म फ़ेयर पुरस्कृत फ़िल्म ‘अर्जुन पंडित’ काफी चर्चित रही, जो कि मनिहारी, साहिबगंज, भागलपुर की क्षेत्रीय कथाओं व घटनाओं से ही जुड़ी रहती थी।
बनफूल ने 600 से अधिक कहानियाँ, 60 से अधिक उपन्यास, 6 से अधिक नाटक तथा असंख्य व अलिपिबद्ध कविताएं तथा अन्य विधाओं में रचनाएँ सृजित की । मृत्यु (9 फरवरी 1979) से पूर्व ही उन्हें भारत सरकार की ओर ‘साहित्य एवं शिक्षा’ व बिहार कोटे से 1975 में ‘पद्मभूषण’ मिला, जो कि उस वर्ष पद्म अवार्ड की क्रम संख्या में 10वें नम्बर पर थे । उन्हें रवीन्द्र पुरस्कार और काज़ी नजरुल इस्लाम पुरस्कार भी प्राप्त है । सन 1999 में बनफूल की जन्म-शताब्दी थी और उस वक्त केंद्र में वाजपेयी सरकार थी, जिनमें ममता बनर्जी ‘रेल मंत्री’ थी।
चूँकि बनफूल की कई रचनाएँ प. बंगाल सहित बांग्लादेश के कक्षा -पाठ्यक्रमों में चलती है, एतदर्थ ममता बनर्जी भी इनकी कहानियों व उपन्यासों की पाठिका रही और फिर बनफूल की जन्मभूमि -जिला कटिहार से सियालदह तक चलनेवाली ट्रेन का नामकरण उनके एक उपन्यास ‘हाटे बजारे’ के नाम से कर दी । इसके साथ ही तब बनफूल पर 3 रुपये का डाकटिकट भी जारी हुई थी । मनिहारी के पुराने लोग ही उन्हें जान रहे हैं, ये पुराने लोग अपनी संतानों को बीच-बीच में अपने क्षेत्र के इस महान व्यक्तित्व और उनके कृतित्व के बारे में जानकारी देते रहने चाहिए।
ध्यातव्य है, अंतरराष्ट्रीय स्तर के दो उपन्यासकारों, यथा- बनफूल और अनूपलाल मंडल की जन्मभूमि कटिहार रही है, तो राष्ट्रीय स्तर की कवयित्री विश्वफूल यहीं की है। इस जिला का नाम गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स तक पहुँचानेवाले एक परिवार ऐसा है, जिनके सभी छह सदस्य अलग-अलग रिकॉर्डों के साथ वर्ल्ड व नेशनल रिकॉर्ड्स होल्डर हैं । पोस्टमैन के परिवार में इसके यहां बने कीर्तिमानों ने देश-दुनिया के दर्जनभर ‘रिकॉर्ड्स बुक’ में जगह पाई है । कई भूले-बिसरे जज्बात भी सँभाले हैं, कटिहार। यहाँ गंदगी भी है, जो कि कृत्रिम देन है, जो कि जिलेवासी के कारण भी हो सकते हैं ! ऐसे कई प्रसंग हैं, जो वर्णन की अधिकता को संक्षेपित करते छूट भी गए हैं।