दो हिंदी उपन्यासों ‘सूअरदान’ और ‘गोदान’ में स्पृहणीय अंतर
वैसे कुछ वर्ष पहले ‘हंस’ में प्रकाशित मेरे आलेख ‘मेहतरानी बहन और चमारिन प्रेमिका’ की कुछ पंक्ति ‘सूअरदान’ में प्रकाशित है, बिना साभार के कारण यह भी चौर्य कृत्य है । ध्यातव्य है, मेरी नाट्यकृति ‘लव इन डार्विन’ की रचनाधारित ही हिंदी फ़िल्म ‘भूतनाथ रिटर्न्स’ बनी है! इस फ़िल्म को बनाने के लिए भी निर्माता-निर्देशक ने ‘कृष-3’ की भाँति ही चौर्य कृत्य किये!
वहीं ‘गोदान’ सिर्फ होरी की कहानी नहीं है । अगर ग्रामीण पृष्ठछेदन की जाय, तो यह गोबर कहानी है, सिर्फ धनिया नहीं, झुनिया की भी कहानी है । सिर्फ दातादीन या मातादीन की कहानी नहीं है, सिलिया और दातादीन के उठंगे स्वभाव की भी कहानी है । शहरी पृष्ठछेदन में रायबहादुर के जनहित से संबंधित कहानी है, तो मालती और मेहता की भी कहानी है।
गोबर-झुनिया के प्रणय-संबंध, मातादीन-सिलिया के प्रणय-संबंध मेहता-मालती के प्रणय-संबंध से कम थोड़े ही है । होरी की जो जीवन भर मेहनत करता है, अनेक कष्ट सहता है, केवल इसलिए कि उसकी मर्यादा की रक्षा हो सके और इसीलिए वह दूसरों को प्रसन्न रखने का प्रयास भी करता है, किंतु उसे इसका फल नहीं मिलता और अंत में मजबूर होना पड़ता है, फिर भी अपनी मर्यादा नहीं बचा पाता। वह जप-तप के अपने जीवन को ही होम कर देता है। होरी मरते भी हैं, तो अपनी गाय नहीं रहती है, जो गोदान कर पाए ! यह सिर्फ होरी की कहानी नहीं, उस समय के हर पात्र-प्रतिनिधियों की आत्मकथा है ‘गोदान’ ! लेखक प्रेमचंद की कलम की यही विशेषता है।
‘गोदान’ संस्कृति लिए है, तो सूअरदान वैज्ञानिक उपन्यास है । दोनों की भाषा हिंदी है । दोनों की कहानी में 80-90 वर्ष का अंतर है । दोनों उपन्यासों के लिए पाठकों को उनकी अपनी नजरिया ही चयनार्थ बेहतर साबित हो सकते हैं!